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कुंजापुरी मंदिर, उत्तराखंड: एक दिव्य शक्तिपीठ का अद्भुत वृतांत |Kunjapuri Temple, Uttarakhand: The Amazing Story of a Divine Shaktipeeth |
कुंजापुरी मंदिर, उत्तराखंड: एक दिव्य शक्तिपीठ का अद्भुत वृतांत
भारत एक धार्मिक और आध्यात्मिक देश है, जहाँ प्रत्येक राज्य में देवी-देवताओं के असंख्य मंदिर हैं। उत्तराखंड, जिसे 'देवभूमि' कहा जाता है, यहाँ के मंदिरों की धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्ता अत्यंत गहन है। इन्हीं मंदिरों में से एक है — कुंजापुरी मंदिर, जो देवी दुर्गा के 52 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यह मंदिर न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि अपने प्राकृतिक सौंदर्य, हिमालय के अद्भुत दृश्यों और आध्यात्मिक वातावरण के कारण श्रद्धालुओं, साधकों और पर्यटकों को भी आकर्षित करता है।
भौगोलिक स्थिति और पहुँच
कुंजापुरी मंदिर उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जिले में स्थित है और यह ऋषिकेश से लगभग 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर समुद्र तल से करीब 1676 मीटर (5500 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है और यहाँ से हिमालय की प्रमुख चोटियाँ जैसे नंदा देवी, चौखंभा, बंदरपूंछ आदि स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। यह मंदिर कुंजापुरी पहाड़ी की चोटी पर स्थित है और इसके 360 डिग्री दृश्य अत्यंत मनोहारी हैं।
ऋषिकेश से नरेंद्रनगर होते हुए यहाँ सड़क मार्ग से पहुँचा जा सकता है। अंतिम 100 से अधिक सीढ़ियाँ चढ़कर श्रद्धालु मंदिर तक पहुँचते हैं।
ऐतिहासिक और पौराणिक पृष्ठभूमि
कुंजापुरी मंदिर की स्थापना से जुड़ी पौराणिक कथा हिन्दू धर्मग्रंथों में वर्णित दक्ष यज्ञ से जुड़ी है। देवी सती के पिता राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। सती इस अपमान को सहन नहीं कर सकीं और उन्होंने यज्ञ कुंड में कूदकर आत्मदाह कर लिया। इससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने सती के मृत शरीर को उठाकर तांडव आरंभ कर दिया।
भगवान विष्णु ने ब्रह्मांड की रक्षा के लिए अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े किए, जो पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर गिरे और वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। मान्यता है कि सती का वक्षस्थल (chest) कुंजापुरी में गिरा, इसीलिए यहाँ पर देवी कुंजा देवी के रूप में पूजी जाती हैं।
धार्मिक महत्त्व
कुंजापुरी मंदिर को सिद्ध पीठ भी माना जाता है और यह गढ़वाल के तीन प्रमुख देवी मंदिरों में से एक है:
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कुंजापुरी (ऋषिकेश के पास)
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सुरकंडा देवी (मसूरी के पास)
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चंद्रबदनी देवी (देवप्रयाग के पास)
यह तीनों मंदिर त्रिकोण बनाते हैं और माना जाता है कि इन तीनों मंदिरों के दर्शन करने से माँ भगवती की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
नवरात्रि के समय इस मंदिर में विशेष उत्सव और पूजन होते हैं। हजारों श्रद्धालु यहाँ आकर कन्या पूजन, दुर्गा सप्तशती पाठ, यज्ञ, और भंडारे का आयोजन करते हैं।
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कुंजापुरी मंदिर, उत्तराखंड: एक दिव्य शक्तिपीठ का अद्भुत वृतांत |Kunjapuri Temple, Uttarakhand: The Amazing Story of a Divine Shaktipeeth |
मंदिर की संरचना और स्थापत्य
मंदिर का प्रवेश द्वार साधारण परंतु पवित्र है। मुख्य मंदिर सफेद रंग में सुसज्जित है और इसके चारों ओर लोहे की रेलिंग और खुला प्रांगण है। मंदिर परिसर से दूर-दूर तक पर्वत श्रृंखलाएँ दिखती हैं। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय यहाँ का वातावरण अत्यंत अलौकिक हो जाता है।
मंदिर में मुख्य गर्भगृह में माँ कुंजापुरी की मूर्ति प्रतिष्ठित है। मूर्ति के आसपास देवी के विभिन्न स्वरूपों की चित्रकारी की गई है। मंदिर में कोई विशेष चढ़ावा या दिखावे की व्यवस्था नहीं है, यहाँ पूजा पूर्ण श्रद्धा और सादगी से होती है।
कुंजापुरी मंदिर और योग/ध्यान
ऋषिकेश को योग की राजधानी कहा जाता है और कुंजापुरी मंदिर इस योगिक परंपरा से गहराई से जुड़ा है। अनेक साधक, योग प्रशिक्षु और आध्यात्मिक जिज्ञासु सुबह-सुबह ट्रैकिंग कर के मंदिर तक पहुँचते हैं और सूर्योदय के समय ध्यान लगाते हैं।
यहाँ से दिखाई देने वाला सूर्योदय अत्यंत मनोहारी होता है और साधक उसे आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत मानते हैं। आसपास के क्षेत्रों में साइलेंस रिट्रीट, ध्यान शिविर और प्राणायाम कक्षाएं भी आयोजित की जाती हैं।
ट्रैकिंग और साहसिक गतिविधियाँ
कुंजापुरी मंदिर तक पहुँचने का रास्ता ट्रैकिंग प्रेमियों के लिए भी लोकप्रिय है। ऋषिकेश से कुंजापुरी तक लगभग 10–12 किलोमीटर की ट्रैकिंग रूट है, जो जंगलों, गाँवों और पहाड़ी रास्तों से होकर गुजरता है।
यह ट्रैक:
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ऋषिकेश → तपोवन → गूलर → हिन्डोलाखाल → कुंजापुरी
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मार्ग में सुंदर घाटियाँ, फूलों की घाटी, और पक्षियों की चहचहाहट मिलती है
Best for:
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Adventure Seekers
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Nature Walk Enthusiasts
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Photographers
कुंजापुरी मंदिर के आसपास के दर्शनीय स्थल
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ऋषिकेश – योग नगरी, गंगा आरती, लक्ष्मण झूला, त्रिवेणी घाट
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नरेंद्रनगर – राजाओं का ऐतिहासिक नगर, अनंदा इन द हिमालयज स्पा
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सुरकंडा देवी मंदिर – प्रसिद्ध सिद्धपीठ, ट्रैकिंग के लिए प्रसिद्ध
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मसूरी – हिल स्टेशन, केंपटी फॉल्स
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देवप्रयाग – गंगा का उद्गम स्थल (भागीरथी और अलकनंदा का संगम)
मेले, उत्सव और परंपराएँ
🪔 नवरात्रि महोत्सव:
यहाँ चैत्र और शारदीय नवरात्र में विशाल मेले का आयोजन होता है। स्थानीय लोग विशेष पारंपरिक वेशभूषा में आते हैं, ढोल-नगाड़ों के साथ यात्रा करते हैं और देवी के दर्शन करते हैं।
🙏 कन्या पूजन
नवरात्र के दौरान 9 कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर पूजन किया जाता है।
🍛 भंडारा परंपरा
श्रद्धालु भंडारे का आयोजन करते हैं जहाँ हजारों लोग एक साथ प्रसाद ग्रहण करते हैं।
आस्था और लोक मान्यताएँ
स्थानीय लोग मानते हैं कि:
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देवी यहाँ स्वयं प्रकट हुई थीं।
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यहाँ माँ से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।
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यात्रा करते समय देवी की जयकारों से वातावरण भक्तिमय हो जाता है:
"जय कुंजा भवानी माता!"
"बोलो जय माँ कुंजापुरी की!"
पर्यटन की दृष्टि से महत्त्व
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Eco-Tourism: प्राकृतिक दृश्य और शांत वातावरण पर्यटकों को आकर्षित करता है।
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Spiritual Tourism: श्रद्धालु और साधक मंदिर में ध्यान, साधना और पूजा हेतु आते हैं।
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Adventure Tourism: ट्रैकिंग, कैंपिंग और सूर्योदय देखना पर्यटकों की पसंद है।
कुंजापुरी मंदिर की देखरेख और विकास
उत्तराखंड सरकार ने इस मंदिर को एक धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की दिशा में प्रयास किए हैं:
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सड़क मार्ग में सुधार
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सीढ़ियों का मरम्मत कार्य
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पीने के पानी, शौचालय और बैठने की सुविधा
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सौर लाइट्स और साफ-सफाई की व्यवस्था
मंदिर दर्शन के लिए सर्वोत्तम समय
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मार्च से जून – मौसम सुहावना और दृश्य साफ़
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सितंबर से नवंबर – मानसून के बाद हरियाली और पर्वत दृश्य
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नवरात्रि – विशेष पूजन और मेले का अनुभव
सुझाव और सावधानियाँ
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ऊँचाई पर होने के कारण गर्म कपड़े रखें
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मंदिर में फोटोग्राफी की अनुमति से पहले पूछें
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ट्रैकिंग करने वाले लोग अच्छे जूते और पानी साथ रखें
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मौसम की जानकारी देखकर यात्रा करें
निष्कर्ष
कुंजापुरी मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक आत्मिक ऊर्जा का केंद्र है। यहाँ श्रद्धा है, संस्कृति है, प्रकृति है और शक्ति की अनुभूति है। यह मंदिर उत्तराखंड की धार्मिक विरासत का अमूल्य रत्न है और हर श्रद्धालु व पर्यटक के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव।
जो भी व्यक्ति माँ कुंजापुरी के दरबार में सच्चे मन से जाता है, उसे न केवल आशीर्वाद मिलता है, बल्कि जीवन के प्रत्येक संघर्ष से लड़ने की शक्ति भी प्राप्त होती है।
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