उत्तराखण्ड का इतिहास/History of Uttarakhand |
उत्तराखण्ड का इतिहास
- उत्तराखण्ड पुरातत्व की दिशा को आगे बढ़ाने का श्रेय यशवंत सिंह कठौच, यशोधर मठपाल, कांतिप्रसाद, मदन भट्ट एवं शिवप्रसाद डबराल आदि विद्वानों को जाता है
- उत्तराखण्ड में पुरातत्व का जनक हेनवुड़ को माना जाता है हेनवुड़ ने 1856 ई0 में देवीधुरा से महापाषाणकालीन पुरावशेषों की खोज की थी
- हरिद्वार के बहादराबाद में ताम्र उपकरण एव मृदभांड की खोज 1951 ई0 में हुयी।
- 1952-1953 ई० को यज्ञदत शर्मा ने हरिद्वार के बहादराबाद में
- पाषाण कालीन अवशेषों की खोज की
- अल्मोड़ा की रामगंगा घाटी में पाषाणकालीन अवशेषों की खोज यशोधर मठपाल ने की, रामगंगा घाटी के नौलाग्राम में कपमार्क्स की खोज भी यशोधर मठपाल ने की
- महरू उड़ियार का सम्बन्ध भी रामगंगा घाटी से है
- चित्रित धूसर मृदभांड के साक्ष्य H.N.B. गढ़वाल विश्व विद्यालय के पुरातत्व विभाग द्वारा श्रीनगर के थापली व उत्तरकाशी से प्राप्त हुए
- कुमांऊ विश्व विद्यालय ने रानीखेत के पास धनखल गांव में 1998 ई० को एम.पी. जोशी तथा डी.एस. नेगी के संरक्षण में उत्खनन का कार्य शुरू करवाया था
- उत्तराखण्ड़ से प्राप्त लौह उपकरणो में सर्वाधिक प्राचीन उपकरण लौह फलक है
- पाँच ताम्र मानव आकृतियों की खोज 1999 ई० नैनीताल में हुयी
- मंगोली शैलचित्र एवं खुटानीनाला से पाषाण युगीन अवशेष नैनीताल से प्राप्त हुए
- 14 नृतकों का सुन्दर चित्रण कसार देवी शैलाश्रय अल्मोंडा से प्राप्त हुये थे
- वैदिक काल में उतराखण्ड में त्रित्सु जन का शासन था
महाश्म संस्कृति
- महाश्म संस्कृति से सम्बन्धित आकृतियां द्वाराहाट के चन्द्रेश्वर मंदिर से प्राप्त हुयी है
- द्वाराहाट चन्द्रेश्वर मंदिर से लगभग 200 कपमार्क्स प्राप्त हुये • महाश्म संस्कृति के आकृतियों की खोज 1877ई0 में रार्बट कार्नक द्वारा की गयी
- कपमार्क्स का सम्बन्ध महाश्म संस्कृति से है जिसका सर्वप्रथम बार उल्लेख कार्नक द्वारा किया गया था • कुमाऊँ से प्राप्त महाश्म कालीन कपमार्क्स को 7 प्रकार में विभाजित किया गया है
- रामगंगा घाटी के नौलाग्राम में डा० यशोधरा मठपाल ने 73 कपमार्क्स खोजे थे
- देवीधुरा में कपमार्क्स की खोज डा० जोशी ने की
- नयार घाटी में कपमार्क्स की खोज डा० कठौच ने की
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