कुमाऊँ का चंद राजवंश
- चंद वंश की स्थापना चम्पावत के राजबुंगा किले से हुयी
- चंदो का मूल निवास प्रयाग में गंगापार घूंसी था
- काली कुमाऊँ चम्पावत का उपनाम था
- चंद वंश के इतिहास के स्रोत बालेश्वर मंदिर में क्राचलदेव का लेख, गोपेश्वर त्रिशूल लेख व बास्ते ताम्रपात्र आदि है
- मझेड़ा ताम्रपत्र से चंद वंश बम शासकों के सम्बन्ध का पता चलता है
- बास्ते ताम्रपात्र मांडलिक राजाओं की सूची से सम्बन्धित है
- मूनाकोट ताम्रपात्र चंद शासकों के करों से सम्बंधित है
- चंदो की प्रारम्भिक राजधानी चम्पावत में चंपावती नदी के तट पर थी और बाद में यहाँ से राजधानी अल्मोडा स्थानान्तरित की गयी
- देवीसिंह या देवीचंद के समय देवीपुर भी राजधानी रही
- चंदों के समय राजमहल को चौमहल कहा जाता था
- चंद राजाओं की वंशावली मानोदय काव्य में दी गयी है
चंद शासक सोमचंद
- 10वीं शताब्दी में लोहाघाट के आसपास सुई राज्य था सुई राज्य पर ब्रह्मदेव शासन कर रहा था
- ब्रह्मदेव ने अपनी पुत्री का विवाह सोमचंद से किया तथा
- चंपावत की कोतवाल छावनी दहेज स्वरूप भेंट कर दी
- चंद वंश का संस्थापक सोमचंद था
- सोमचंद कन्नौज नरेश का भाई था
- सोमचंद प्रयाग के शासक चदपाल फूर का वंशज था
- एटकिंसन, वाल्टन व बद्रीदत पाण्डे ने चंदो का मूल निवास प्रयाग के निकट झुंसी बताया
- सोमचंद शिव का उपासक था
- सोमचंद के समय कुमाऊँ का शासक ब्रह्मदेव था
- चंपावत के कोतवाल छावनी में सोमचंद ने राजबुंगा किला बनाया
- सोमचंद ने चार किलेदार नियुक्त किए कार्की, बोरा, तड़ागी व चौधरी जो मूलतः नेपाल के थे, जिन्हे चाराल कहा गया
- सोमचंद ने सर्वप्रथम दोनकोट के रावत राजा को परास्त किया
- सोमचंद ने महरा व फर्त्यालों को मंत्री व सेनापति बनाया
- महरा लोग कोटलगढ व फर्त्याल लोग डुंगरी में रहते थे
- सोमचंद ने ग्रामों में बूढ़ा व सयानों की नियुक्ति की
- सोमचंद डोटी के राजा को कर दिया करता था
- डोटी के राजा मल्लवंशी थे, जिन्हें रैका राजा कहा जाता था
- सोमचंद के समय जयदेव मल्ल डोटी या नेपाल का राजा था
- मल्लवंश का प्रथम राजा वामदेव था, जिसकी राजधानी चंपा थी
- सोमचंद ने चंद वंश की स्थापना 1020 ई0 से 1025 ई0 के बीच की होगी यह माना जाता है
- चंद वंश की स्थापना को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है लेकिन अनुमानतः कत्यूरी शासन के अवसान पर ही चंद वंश की उत्पति हुयी।
- सोमचंद का उत्तराधिकारी व दूसरा चंद शासक आत्मचंद था
- आत्मचंद ने 20 वर्षों तक शासन किया
- तीसरा चंद शासक पूर्णचंद था
- पूर्णचंद ने 1066 ई0 से 1084 ई0 तक शासन किया
इन्द्रचंद व उसके उत्तराधिकारी
- इन्द्रचंद चौथा चंद शासक था
- एटकिंसन के अनुसार इन्द्रचंद ने रेशम उत्पादन व रेशमी वस्त्र बनाने का कार्य प्रारम्भ किया
- इन्द्रचंद ने चीन से व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित किए
- इन्द्रचंद का उतराधिकारी संसार चंद था
- संसार चंद के बाद क्रमशः सुधाचंद, हरिचंद, वीणाचंद गद्दी पर बैठे थे
- वीणाचंद कुमाऊँ का विलासी राजा था
- वीणाचंद को खस राजाओं ने पराजित किया
- वीरचंद ने खस राजाओ को हरा कर पुनः राज्य पर कब्जा किया
- अशोकचल्ल के समय चंद शासक वीर चंद था
- वीरचंद की 1206 ई० में मृत्यु हुयी
- गोपेश्वर त्रिशूल लेख से ज्ञात होता है कि 1191 ई० में यहां अशोक चल्ल का आधिपत्य था
- अशोकचल्ल वैराथ कुल का था और दुलु निवासी था
- अशोकचल्ल ने पुरूषोतम सिंह को सांमत राजा नियुक्त किया
- चंपावत के बालेश्वर मंदिर से क्राच्लदेव का 1223 ई० का शिलालेख प्राप्त हुआ
- क्राच्लदेव के लेख में 10 मांडलिक राजाओं के नाम उत्कीर्ण थे
- बास्ते ताम्रपत्र में मोहनथापा नामक मांडलिक का उल्लेख है, जिसका अधिपति शक्तिबम था
- वीरचंद का उत्तराधिकारी नरचंद लगभग 1236 ई0 में गद्दी पर बैठा था
चंद शासक थोहरचंद
- हर्षदेव जोशी थोहरचंद को कुमाऊँ के चंद वंश का संस्थापक मानते हैं
- रिपोर्ट आन कुमाऊँ व गढ़वाल 1813 के रचयिता डब्लयू फ्रेजर है
- फ्रेजर भी थोहरचंद को चंद वंश का संस्थापक मानते है
- थोहरचंद का शासनकाल का समय 1261 ई0 है एटकिंसन अनुसार
- कुमाऊँ का प्रथम स्वतंत्र शासक थोहरचंद था
- थोहरचंद का उत्तराधिकारी कल्याण चंद प्रथम था
- कल्याण चंद के बाद त्रिलोकचंद व अभयचंद का नाम आता है
- अभयचंद पहला चंद शासक था जिसकी प्रामाणिक सूचना उसके
- स्वयं के अभिलेखों से मिलती है।
- अभयचंद का प्राचीनतम ज्ञात अभिलेख 1360ई0 का है
- अभयचंद का वार्षिक श्राद्ध पर ज्ञानचंद ने ताम्रपत्र द्वारा भूमि दान का उल्लेख मिलता है
चंद शासक गरूड़ ज्ञानचंद
- ज्ञानचंद 1365 ई0 से 1420 ई0 तक शासन किया था
- गरूड ज्ञानचंद 29 वां चंद शासक था
- ज्ञानचंद पहला चंद शासक था जो दिल्ली दरबार गया था
- ज्ञानचंद के समय दिल्ली का सुल्तान फिरोजशाह तुगलक था
- ज्ञानचंद के समय तराई भाबर क्षेत्र में कटेहरियों का शासन था
- फिरोजशाह तुगलक ने ज्ञानचंद को गरूड़ की उपाधि दी, तथा तराई का क्षेत्र ज्ञानचंद को सौंपा
- ज्ञानचंद का राज चिन्ह गरूड़ था और वह विष्णु का उपासक था
- सेरा खड़कोट ताम्रपत्र में इसे राजाधिराज महाराज कहा गया।
- नीलू कठायत ज्ञान चंद का वीरवान सेनापति था
- गोबासा ताम्रपत्र का सम्बन्ध भी ज्ञानचंद से था
- 1423 ई0 के बालेश्वर मंदिर ताम्रपत्र का सम्बन्ध विक्रमंचद से था
- विक्रमचंद, उद्यान चंद का पुत्र था
- 1423 ई० का एक ताम्रपत्र गुजराती ब्राह्मण कुंज शर्मा तिवारी के नाम का मिला था
- कुंज शर्मा का बालेश्वर मंदिर के जीर्णोद्धार में प्रमुख योगदान था
चंद शासक भारतीचंद
- भारतीचंद 1437 ई0 मे गद्दी पर बैठा
- भारतीचंद 35 वां चंद शासक था
- भारतीचंद का कार्यकाल 1437 ई0 से 1477 ई0 तक रहा
- भारतीचंद के पंवाड़े कुमाऊँ इतिहास मे प्रसिद्ध है
- पवाड़ों में भारतीचंद व कुमाऊँ की वीरागंना भागाधौन्यान के बीच द्वन्द्व युद्ध का वर्णन मिलता है
- भारतीचंद इस वंश का सबसे पराक्रमी व साहसी राजा था
- भारतीचंद ने डोटी की दासता से छुटकारा पाने के लिए डोटी राज्य पर आक्रमण किया
- भारतीचंद की सेना या कटक में समाज के सभी जाति के लोग थे।
- डोटी आक्रमण के दौरान चंद सेना का पहला पड़ाव सोर के कटकुनौला में था
- दूसरा पड़ाव काली नदी के किनारे बाली-चौड में था
- भारतीचंद ने 12 वर्षो तक डोटी पर घेरा डाला था
- भारतीचंद को डोटी पर विजय 1451-52 ई0 में मिली
- डोटी अभियान के तहत नायक जाति की उत्पति हुई थी।
- भारतीचंद ने अपने पुत्र रत्नचंद की सहायता से सोर, सीरा, थल, आदि पर अधिकार कर लिया
- खेतीखान ताम्रपत्र में भारती चंद के दूसरे पुत्र सुजान कुँवर का उल्लेख मिलता है
सीरा राज्य
- सीरा में भारतीचंद ने डुंगरा बसेरा को अपना सांमत नियुक्त किया
- बसेंड़ा से पहले सीरा में कल्याण मल्ल का शासन था
- डुंगरा बसेरा के बाद मदन सिंह व रायसिह को सांमत नियुक्त हुए
- बसेडों ने 1452 ई0 से लेकर 1539 ई0 तक शासन किया
- 1539 ई0 में डोटी राजा राईमल्ल सीरा का शासक बना
- रूद्रचंद के समय हरिमल्ल सीरा का शासक था, जिसे रूद्रचंद ने पराजित किया
- रूद्रचंद ने थल विजय के उपलक्ष्य में यहाँ पर शिव मंदिर बनाया
- रूद्रचंद ने सीरा में भूमि का विधिपूर्वक बंदोबस्त कराया था
भारतीचंद के समय डोटी राज्य
- भारतीचंद के समय डोटी या नेपाल के शासक जयमल्ल था
- डोटी में मल्ल राजाओं का शासन था, मल्लों ने सीरा या डीडीहाट को अपने राज्य में मिलाकर इसे पर्वत डोटी कहा
- डोटी के राजकुमार जो सीरा मंडल का प्रशासक था, उसे रैका या राई कहा जाता था
- सीरा मंडल में बलिनारायण संसार मल्ल शासक था
- सोर या पिथौरागढ़ में मल्ल वंश का बमशाह शासक था
चंद शासक रत्नचंद
- लोहाघाट व हुड़ेती ताम्रपत्र में रत्नचंद का उल्लेख मिलता है।
- भारतीचंद के बाद उसका पुत्र रत्नचंद 1477 ई0 में गद्दी पर बैठा
- रत्नचंद के समय डोटी में नागमल्ल ने विद्रोह किया
- रत्नचंद ने नागमल्ल को परास्त कर पुनः डोटी पर शाही वंश का अधिकार स्थापित कराया
- रत्नचंद ने थल के राजा सूर सिंह महरा को हराया • रत्नचंद ने सीरा को जीतकर बसेड़ा राजपूत को वहाँ का सामंत बनाया था
चंद शासक कीर्तिचंद
- रत्नचंद का उतराधिकारी उसका पुत्र कीर्तिचंद था
- कीर्तिचंद 1488 ई0 में गद्दी पर बैठा था
- कीर्तिचंद ने गढ़वाल शासक अजयपाल को पराजित किया था
- कीर्तिचंद ने राज्य विस्तार में बारामंडल व विसौद आदि को अपने राज्य में मिलाया
चंद शासक भीष्मचंद
- 1512 ई0 से 1530 ई0 तक गद्दी पर बैठा
- 1514 ई0 में भीष्मचंद का एक ताम्रपत्र मिला
- भीष्मचंद ने चम्पावत से राजधानी अल्मोड़ा स्थानान्तरित की
- अल्मोडा के खगमरा किला का निर्माण भीष्मचंद ने कराया
- भीष्मचंद का उतराधिकारी बालो कल्याण चंद था,
चंद शासक बालो कल्याण चंद
- बालोकल्याण चंद के समय का ताम्रपत्र कलपानी गाड पिथौरागढ़ से प्राप्त हुआ
- कल्याण चंद 1545 ई0 से 1565 ई0 तक गद्दी पर बैठा
- बालो कल्याणचंद, भीष्मचंद का गोद लिया पुत्र था
- कल्याण चंद के समय राजधानी अल्मोड़ा पूर्ण रूप से बनी थी
- अल्मोंडा स्थित राजधानी को राजापुर कहा गया
- बालो कल्याण चंद का विवाह डोटी के मल्ल वंश की राजकुमारी के साथ हुआ और विवाह के बाद रैका राजा हरिमल्ल ने अपनी बहिन को दान स्वरूप सोर प्रांत दिया
- लेकिन कल्याण चंद सीर प्रांत को भी चाहते थे।
- सीरगढ़ के किले पर रूद्रचंद ने 7 बार आक्रमण किया
- रूद्रचंद ने सेनापति पुरूषोतम पंत की सहायता से 1581 ई०
- सीरगढ़ का किला जीता, और अपने पिता की इच्छा पूरी की
- कल्याण चंद ने मणकोट राज्य को चंद राज्य में मिलाया
- गंगोली व दानपुर पर कब्जा बालो कल्याण चंद के समय हुआ
- कल्याण चंद ने अल्मोड़ा में लालमंडी किले का निर्माण करवाया
- कल्याण चंद ने इस्लाम शाह सूर के शत्रु ख्वांस खां को चंद राज्य में शरण दी, इसका चंद राज्य में शरण सही समय पता नहीं है
- कल्याण चंद ने अपने शासनकाल के दौरान स्थानीय स्वायतता या पंचायती पद्धति लागू की
- महाराष्ट्र के लेखक अन्नतदेव ने अपने ग्रंथ स्मृति कौंतुभ मे कल्याण चंद को प्रजा हितैषी बताया
चंद शासक रूद्रचंद
- बालो कल्याण चंद के पश्चात रूद्रचंद गद्दी पर बैठा
- रूद्रचंद 45 वां चंदशासक था
- रूद्रचंद का कार्यकाल 1565 ई0 से 1597 ई0 तक था
- रूद्रचंद अकबर के समकालीन था, जिसने 1587 ई0 में अकबर की अधीनता स्वीकार की
- रूद्रचंद ने तराई पर आक्रमण किया इसके समय तराई पर हुसैन खां ने कब्जा किया था
- रूद्रचंद ने तराई में रूद्रपुर नगर की स्थापना की
- रूद्रचंद ने अकबर को तिब्बती याक, कस्तूरी हिरन की खालें भेंट की थी इसलिये अकबर ने रूद्रचंद को चौरासी माल परगना का फरमान जारी किया और उसे तब से जमींदार कहना प्रारंभ किया
- रूद्रचंद ने गढ़वाल के सरोला ब्रहह्मणों की भाँति कुमाऊँ में चौथानी ब्रह्मणों की मंडली बनायी
- चैथानी ब्राह्मणों के नीचे पचबिडिये या तिथानी व उनके नीचे वाले हलिए या पितलिये ब्राहमणों के वर्ग स्थापित किये
- ओली ब्राहमणों के वर्ग का काम ओले पड़ने पर सर्तक करना था
- ओली ब्रहाणों के लिए गांव में अनाज के रूप में किए गये दस्तूर निर्धारित |
- घरों का कार्य करने के लिए छयोड़े व छयोड़िया की नियुक्ति की
- सीरा से रूद्रचंद के भूमि-सम्बन्धी दस्तावेज प्राप्त हुये
- सीरा के विजय के बाद अस्कोट, दारमा व जोहार रूद्रचंद के अधीन हो गये थे
- अकबरनामा के अनुसार रूद्रचंद की 1588 ई0 में अकबर से लाहौर में भेट हुई
- रूद्रचंद ने सामाजिक व्यवस्था सुधार के लिए त्रैवर्णिक धर्म निर्णय नामक पुस्तक लिखवायी
- रूद्रचंद ने समस्त सामान्य जनता के लिए पौड़ी पंदह विस्वा कहा
- चंदो के समय भूमि के मालिक को थातवान कहते थे
- रूद्रचंद के राजा बीरबल से अच्छे सम्बन्ध थे
- रूद्रचंद ने राज्य के कुछ युवाओं को संस्कृत अध्ययन करने के लिए कश्मीर व काशी भेजा
- रूद्रचंद के समय चार संस्कृत ग्रंथों की रचना हुयी जो निम्न हैं- त्रैवर्णिक धर्म-निर्णय, ययातिचरित्रम, शारागगोदयनाटिका एवं शैयनिक शास्त्र,
- शैयनिक शास्त्र पक्षी आखेट पर आधारित पुस्तक थी
- अबुल फजल की आइने अकबरी में कुमाऊँ सरकार को दिल्ली। सूबे के अन्तर्गत दर्शाया गया है
- रूद्रचंद विश्व का प्रथम शासक था जिसने स्वयं मल्ल युद्ध में उतरकर राज्य का विस्तार किया था
पुरूषोतम पंत
- पुरूषोतम पंत रूद्रचंद का सेनापति था
- इसका उपनाम पुरखु पंत था, जो मूल निवासी पिथौरागढ़ का था
- पुरूषोतम पंत को कुमाऊँ इतिहास का राबर्ट बुश कहा जाता है
- पुरूषोतम पंत मराठी ब्राह्मण जयदेव के थे
- सीरागढ़ से मल्ल राजा हरिमल्ल को भगाने में पुरुषोतम पंत का मुख्य योगदान था
- अपने बचन के अनुरूप सीरागढ़ का किला जीतने के बाद बालोकल्याणचंद की पत्नी सती हुयी थी
- ग्वालदम का युद्ध या बधाण गढ़ के युद्ध में पुरुषोतम पंत पड्यार राजपूतों के हाथों मारा गया
- ग्वालदम के युद्ध के समय गढ़वाल शासक बलभद्र शाह था के ग्वालदम का युद्ध लगभग 1581 ई० में हुआ था
चंद शासक लक्ष्मीचंद
- रूद्रचंद के बाद 1597 ई० में उसका छोटा पुत्र लक्ष्मीचंद गद्दी पर बैठा था
- मानोदय काव्य में लक्ष्मी चंद का नाम लक्ष्मण मिलता है।
- मूनाकोट ताम्रपत्र में लक्ष्मीचंद का नाम लछिमन मिलता है\
- लक्ष्मीचंद 46 वां चंद शासक था
- लक्ष्मीचंद को लखुली विराली उपनाम से जाना जाता था लखुली विराली उपनाम इसलिए था कि वह मुगलों के सम्मुख भीगी बिल्ली बना रहता था
- लक्ष्मीचंद का सेनापति गैंडा सिंह था
- लक्ष्मीचंद ने गढ़वाल पर 7 बारं असफल आक्रमण किए • लक्ष्मीचंद के गढ़वाल पर 8वें आक्रमण के समय गढ़वाली
- सेनापति खतड़ सिंह मारा गया
- आशिंक विजय के प्रतीक के रूप में खतडुवा त्योहार मनाया गया
- आज भी कुमाऊँ में खतडुवा पशुओं का त्योहार मनाया जाता है।
- लक्ष्मीचंद ने न्योवली व विष्टावली नामक कचहरियां बनाई
- न्योवली कचहरी समस्त जनता के लिए थी
- विष्टावली कचहरी सैनिक मामलों के न्याय के लिए थी
- लक्ष्मीचंद ने बड़े-बड़े बाग-बगीचे लगवाये
- नरसिंह बाड़ी, कबीना, तथा लक्ष्मीश्वर आदि बगीचे बनवाये
- बागेश्वर के बाघनाथ-मंदिर का जीर्णोद्धार लक्ष्मीचंद ने 1602 ई० में किया
- लक्ष्मीचंद ने तमोटा को एक अधाली या आठ नाली भूमि दान में दी
- चंदों के समय रौत बहादुरी के पुरस्कार के रूप में जमीने दी जाती थी
- लक्ष्मीचंद के समय करों के भय से लोग शाक-सब्जियां छतों पर उगाया करते थे
- ज्यूलिया व सिरती नामक कर लक्ष्मीचंद द्वारा लगाये गये
- लक्ष्मीचंद के समय राज्य कर्मचारीयों की तीन श्रेणियाँ बनायी गयी जिनको अनाज के रूप में दस्तूर मिलता था
- 1. सरदार-परगने का शासक
- 2. फौजदार- सेना का अधिकारी
- 3. नेगी- राज्य के छोटे कर्मचारी
शक्ति गुसांई
- शक्ति गुसांई, लक्ष्मीचंद का बड़ा भाई था शक्तिगुसांई जन्मांध था, जिस कारण उसे कुमाऊँ का धृतराष्ट्र कहा जाता है
- लक्ष्मीचंद के समय प्रशासनिक व्यवस्था इनकी नीतियों निर्धारित होती थी
लक्ष्मीचंद के उत्तराधिकारी
- लक्ष्मीचंद के बाद दलीप (दिलीप) चंद राजा बना • दलीप चंद ने 1621 ई0 से 1624 ई0 तक शासन किया
- दलीप चंद की मृत्यु क्षय रोग के कारण हुयी
- दलीपचंद के बाद विजयचंद राजगद्दी पर बैठा
- विजय चंद का विवाह अनूप शहर के बड़गुजर की पुत्री से हुआ
- विजयचंद के समय राज सत्ता सुखराम कार्की व पीरू गुंसाई के हाथों में थी
- सामाजिक सम्बन्धों के कारण त्रिमलचंद ने सुखराम कार्की के द्वारा विजयचंद को मरवा दिया
- विजयचंद की हत्या के बाद महरा व फर्त्याल संघर्ष प्रारम्भ हुआ.
- जिसमें महरों को विजयी मिली
- महरा धड़े ने ही त्रिमलचंद को शासक बनाया
- त्रिमलचंद ने 1616 ई0 से 1621 ई0 तक युवराज के रूप में कार्य किया
- त्रिमलचंद का सेनापति गड्यूड़ा था
- 1625 ई० में विजयचंद की मृत्यु के बाद त्रिमलचंद का 1625 में राज्यारोहण हुआ
- त्रिमलचंद का कार्यकाल 1625 ई0 से 1638 ई0 तक रहा
बाजबहादुर चंद
- 50वां राजा त्रिमलचंद का उतराधिकारी था
- बाजबहादुर चंद का कार्यकाल 1638 ई0 से 1677 ई0 तक था
- बाजबहादुर चंद चरवाहे से राजा बनने वाला एक मात्र चंद नरेश था
- बाज बहादुरचंद मूल्यवान वस्तु लेकर मुगल बादशाह शाहजंहा के दरबार पहुँच गया था
- इसे बहादुर या जमींदार की उपाधि शाहजहाँ ने दी
- चौरसी माल पर कटेहरी राजपूतों ने अधिकार कर लिया था
- चौरसी माल या नौलखिया माल तराई में 84 कोस लंबे भू-भाग चंदों को प्रतिवर्ष 9 लाख प्रति वर्ष आय होती थी
- मुगल बादशाह ने बहादुर चंद को चौरसी माल का फरमान दे दिया था
- इसने तराई क्षेत्र में बाजपुर नगर की स्थापना की
- बहादुर चंद ने पंवार राज्य पर विजय के प्रतीक रूप में नंदादेवी की मूर्ति गढ़वाल से लाकर अल्मोंडा किले में स्थापित करायी
- मुगल बादशाह ने गढ़वाल आक्रमण के लिए 1655 ई०
- खलीखुल्ला के नेतृत्व में सेना भेजी, जिसकी मदद बहादुर चंद ने की थी
- बाज बहादुरचंद ने कत्यूरी राजकुँवरों के गढ़ मनीला-गढ़ पर
- आक्रमण किया जिससे बाद कत्यूरी कुंवरो ने गढ़वाल के पूर्वी भाग पर लूट-पाट की थी
- तीलू रौतेली बाजबहादुर चंद के समकालीन थी
- बहादुर चंद ने तिब्बती अभियान के तहत हुणियों का दमन किया, जिससे मानसरोवर यात्रा व भोटिया व्यापार को बाधाओं से मुक्त किया था
- बाजबहादुर ने कैलाश मानसरोवर के तीर्थ यात्रियों के लिए 1673 में गूंठ भूमि दान की
- इसने भोटिया व शौकाओं द्वारा तिब्बत को दी जाने वाली दस्तूर पर रोक लगा दी
- बाजबहादुर चंद ने 1669 ई0 में सोर की यात्रा की, उस समय सोर को खडायत का परगना कहा जाता था।
- सोर में उर्ग गांव को भारतीचंद ने सदानंद जोशी को दे रखा था बहादुरचंद ने रतन जोशी को उर्ग गांव के बदले तल्ला रंयासी मे जमीन दी
- ताम्रपत्र में सदानंद जोशी को लटोला राठ कहा गया
- बहादुरचंद के समय डोटी के राजा देवपाल था
- बाजबहादुर ने भोटियों व हुणियों से सिरती नामक कर लिया
- इसने दरबार को मुगल दरबार के अनुरूप बनाने का प्रयास किया
- पिथौरागढ़ के थल में एक हथिया देवाल बाजबहादुर चंद ने बनवाया था
- हथिया देवाल की बनावट एलौरा के कैलाश मंदिर के समान है
- बाजबहादुर चंद का एक चित्र न्यूयार्क संग्रहालय में रखा गया है
- बाजबहादुर चंद की उम्र के अंतिम वर्षों में एक कहावत है कि बरस भयो अस्सी, बुद्धि गयी नस्सी
चंद शासक उद्योत चंद
- 1678 ई0 में गद्दी पर बैठा, और एक तपस्वी शासक था
- इसका शासन काल 1678 ई0 से 1698 ई0 तक था
- गढ़वाल का शासक इसके समय फतेह शाह था
- उद्योत चंद को धाईमाता की बीमारी थी
- उद्योत चंद का राजवैद्य वरदेव था
- उद्योत चंद का सेनापति हिरू देउबा था
- सौर का नेगी भी शिरोमणी जोशी था
- उद्योत चंद ने 1678 ई0 में बधाण गढ़ का किला जीता
- बधाण गढ के युद्ध में उद्योतचंद का सेनापति मैसू शाह मारा गया
- उद्योत चंद ने युद्ध न करने का वचन लिया और शांति की तलाश मे चल पड़ा
- उद्योत चंद ने तल्ला महल व रंगमहल का निर्माण कराया
- उद्योत चंद ने त्रिपुरी सुन्दरी का मंदिर अल्मोड़ा में बनवाया
- उद्योत चंद का दूसरा सेनापति शिरोमणि जोशी था
- उद्योतचंद ने राज्य में स्थायी सैनिक छावनियां बनायी
- उद्योत चंद के समय मराठा राजकवि मतिराम चंद दरबार में आया था
- उद्योत चंद के समय रूद्रपुर के क्षेत्र को तराई भाबर कहा जाता था • उद्योतचंद ने कोटा भाबर में आम के बगीचे लगवाए थे
- चम्पावत में बालेश्वर मंदिर की नींव रखी, इस मंदिर का पूर्ण निर्माण विक्रम चंद ने कराया • उद्योतचंद के समय माल का सीकदार जगन्नाथ बरै व सीर का सीकदार गंगाराम था
उद्योत चंद का डोटी अभियान
- भारतीचंद के बाद दूसरा चंदराजा उद्योत चंद था जिसने डोटी पर आक्रमण किया था
- डोटी विजय के बाद उद्योत चंद 1682 ई0 में प्रयाग के रघुनाथपुर घाट में स्नान किया
- डोटी राजा देवपाल ने काली कुमाँऊ पर कब्जा कर लिया था
- उद्योत चंद ने 1683 ई. में नेपाल की ग्रीष्मकालीन राजधानी अजमेरगढ़ पर अधिकार किया था
- इसके समय डोटी के राजा देवपाल ने चम्पावत पर अधिकार कर लिया था
- डोटी के राजा की शीतकालीन राजधानी जुराइल-दिपाइल कोट थी, जो सेटी नदी के किनारे स्थित था
- उद्योत चंद ने 1688 ई0 में खैरागढ़ के किले पर अधिकार कर लिया
- खैरागढ की संधि देवपाल के साथ हुयी
चंद शासक ज्ञानचंद
- 1698 ई0 से 1708 ई0 तक गद्दी पर बैठा
- 1699 में इसने बधानगढ़ पर विजय प्राप्त की
- ज्ञानचंद ने बधाण गढ़ से नंदादेवी की स्वर्ण प्रतिमा अपने साथ लेकर अल्मोड़ा के नंदादेवी मंदिर में स्थापित की
- ज्ञानचंद के समय गढ़वाल राजा फतेहशाह ने चंद राज्य के पाली
- परगने को लूटा 1704 ई0 में ज्ञानचंद ने डोटी पर आक्रमण पिता की हार का बदला • लेने के लिए किया
- 1703 ई0 में दुधौली का युद्ध ज्ञानचंद व फतेहशाह के बीच हुआ • ज्ञानचंद ने कत्यूर घाटी में बद्रीनाथ मंदिर बनवाया
- ज्ञानचंद ने तराई-भाबर क्षेत्र में आम के बगीचे लगवाए • ज्ञानचंद द्वारा सोर व सीरा क्षेत्र में बनवाए गए मंदिरों को देवल या द्यौल कहा जाता था
चंद शासक जगतचंद
- कुमाऊँ में जगतचंद के कार्यकाल को चंद वंश का स्वर्ण काल कहा जाता है
- जगतचंद का कार्यकाल 1708 ई0 से 1720 ई0 तक था
- जगतचंद स्वयं मिलनसार व्यक्ति व प्रजा का हितैषी राजा था
- जगतचंद ने अपने राजकाज के पहले वर्ष लोहबगढ़ व बधानगढ़ गढ़ सेना को मार भगाया
- श्रीनगर में जगतचंद व फतेहशाह के बीच युद्ध हुआ जिसमें गढ़नरेश देहरादून भाग गया
- जगतचंद ने श्रीनगर पर कब्जा कर एक ब्राह्मण को दान दे दिया
- जगतचंद के समय फतेह शाह ने कत्यूर घाटी में आक्रमण किया और बैजनाथ घाटी को लूटने के बाद गरसार ग्राम बद्रीनाथ मंदिर को चढ़ा दिया
- जगतचंद ने मुगल शासक बहादुरशाह को कीमती पहाड़ी चीजें भेंट की, इसलिये दिल्ली शासक ने उसे अभयदान दिया
- जगतचंद ने जुआरियों पर कर लगाया
- जगतचंद की मृत्यु चेचक के कारण हुयी
- जगत चंद के बरम ताम्रपत्र से ज्ञात होता है कि ज्ञानचंद के समय जोशी वैद्यकुड़ी ने बधाणगढ़ की जासुसी की थी
- 1720 ई0 जगतचंद की मृत्यु के बाद देवीचंद गद्दी पर बैठा • जगतचंद के समय सीरा का सीकदार शत्रुपाल भंडारी था
चंद वंश का अवनति काल
- जगतचंद का उत्तराधिकारी देवीचंद था, जिसके समय से चंद वंश का अवनति काल शुरू हुआ
- देवीचंद ने 1720 ई0 से 1726 ई0 तक शासन किया
- विक्रमादित्य बनने के चक्कर में देवीचंद ने काफी धन बर्बाद किया
- कुमाऊँ का विक्रमादित्या भी देवीचंद को कहा जाता है
- देवीचंद को कुमाऊँ का मुहम्मद तुगलक कहा जाता है
- देवी चंद ने एक पहाड़ी को विजित कर उसका नाम फतेहपुर रखा
- देवीचंद की हत्या उसके बिष्ट दरबारियों में मणिक विष्ट व उसका पुत्र पूरनमल ने की
- देवीचंद के बाद क्रमशः अजीतचंद, कल्याण चंद, दीपचंद, मोहन चंद, प्रद्युम्न चंद, शिवचंद, और अंतिम राजा महेन्द्रचंद हुये थे
चंद शासक कल्याण चंद चतुर्थ
- कल्याण चंद चतुर्थ का कार्यकाल 1730 ई0 से 1747 ई0 तक रहा
- कल्याणचंद चतुर्थ के समय 1743-1745 ई० को कुमांऊँ पर रूहेलों का आक्रमण हुआ
- 1743 ई0 में रूहेलखण्ड या कटेहर के सरदार अली मुहम्मद खाँ ने कुमाऊँ पर आक्रमण किया
- रोहेला आक्रमण के समय गढ़वाल शासक प्रदीपशाह ने चंद शासक की मदद की
- कल्याण चंद चतुर्थ के समय अवध के नबाव मंसूर अली खां ने
- कुमाऊँ के तराई पर अधिकार कर शिवदेव जोशी को बंदी बनाया
- कल्याणचंद चतुर्थ ने मुगल बादशाह रंगीला को भेट देने के लिए जागेश्वर मंदिर से ऋण लिया
- कल्याण चंद चतुर्थ को काशीपुर के मुगल वजीर कमरूद्दीन द्वारा सम्मान गॉड आफ ऑनर दिया था
- कल्याणचंद चतुर्थ ने अल्मोड़ा में चौमहल महल बनाया, जिसे
- कल्याणचंद राजबुंगा के नाम से पुकारता था
- कल्याणचंद चतुर्थ ने लछी गुंसाई मनराल को सयानाचारी सौंपी
- लछी गुसाई मनराल 16 गांवो का सयाना था
- कल्याण चंद चतुर्थ के समय बलिराम चौधरी लेखक था
- कल्याण चन्द्रोदयम् पुस्तक के लेखक कवि शिव है, जो कल्याण चंद का राजकवि था
- जीवन के अंतिम समय में कल्याणचंद चतुर्थ की आँखों की रोशनी चली जाती है
शिवदेव जोशी
- इतिहासकार नित्यानंद मिश्र द्वारा शिवदेव जोशी को कुमाऊँ का शिवाजी कहा था
- शिवदेव जोशी ने रोहेला आक्रमण का डटकर सामना किया
- शिवदेव जोशी कल्याण चंद चतुर्थ का सेनापति था
- शिवदेव जोशी को सम्मान स्वरूप तराई-भाबर का प्रबंधन दिया गया
- कल्याण चंद ने शिवदेव जोशी को बख्शी की उपाधि दी
- शिवदेव जोशी को अल्प व्यस्क पुत्र दीपचंद का संरक्षक नियुक्त किया गया
- कुमाऊँ का बैरम खां भी शिवदेव जोशी को कहा जा सकता है
कल्याणचंद चतुर्थ के उतराधिकारी
- 1748 ई0 में दीपचंद कुमाऊँ का शासक बना
- दीपचंद के समय पानीपत का तीसरा युद्ध हुआ था
- शिवदेव जोशी के मरने के बाद दीपचंद ने हर्षदेव जोशी को बख्शी बनाया
- कुछ समय बाद दीपचंद के भाई मोहनचंद ने दीपचंद की गद्दी हड़प ली
- हर्षदेव को बंदी बना दिया गया, मगर वह किसी तरह भाग निकला
- हर्षदेव जोशी ने गढ़वाल के शासक ललितशाह को कुमाऊँ पर आक्रमण के लिए आमंत्रित किया
- बग्वाली पोखर का युद्ध ललितशाह की सेना व मोहन चंद के बीच हुआ, जिसमें मोहनचंद लखनऊ भाग खड़ा हुआ
- ललितशाह ने अपने पुत्र प्रधुम्नशाह को कुमाऊँ की गद्दी पर बैठाया, और हर्षदेव जोशी को प्रधानमंत्री नियुक्त किया
- प्रधुम्न शाह 1779 ई0 से 1786 ई0 तक कुमाऊँ की गद्दी पर बैठा
- जयकृत शाह की मृत्यु के बाद प्रधुम्नशाह श्रीनगर की गद्दी पर बैठा था
- मोहनचंद ने सिंहासन खाली होने का फायदा उठाकर कुमाऊँ की गद्दी हथिया ली, मोहनचंद दूसरी बार कुमाऊँ का राजा बना
- हर्षदेव जोशी ने सशक्त सेना तैयार कर 1786 में पालीगांव के युद्ध में मोहनचंद को हराया
- हर्षदेव जोशी ने शिवचंद को शासक बनाया
- शिवचंद 61वां चंद शासक था
- शिवचंद को मिट्टी का महादेव कहा जाता है इसके बाद मोहनचंद के भाई लाल सिंह ने रामपुर के नबाव की सहायता से कुमांऊ गद्दी हथिया ली
- लाल सिंह ने मोहनचंद के पुत्र महेन्द्रचंद को गद्दी पर बैठाकर खुद उसका प्रधानमंत्री बन गया
- अंतिम चंद शासक महेन्द्रचंद इस वशं का 62वां शासक था
- हर्षदेव जोशी ने गोरखा नायक बहादुरशाह को कुमाऊँ पर आक्रमण का न्यौता दिया
- 1790 ई0 में हवालबाग के साधारण युद्ध में महेन्द्रचंद व लाल सिंह हार गया
- 1 फरवरी 1790 ई० अल्मोडा पर गोरखों का कब्जा हो गया
हर्षदेव जोशी
- इसे हरकदेव जोशी भी कहा जाता है
- हर्षदेव जोशी को कुमाऊँ राजनीति का अलर्वारिक कहा जाता है। • हर्षदेव जोशी का कुमाऊँ का किंगमेकर भी कहा जाता है
- डब्लयू फेजर व कैप्टन हेयरसी ने हर्षदेव जोशी को कुमाऊँ का अलवारिक कहा
- हर्षदेव जोशी ने लगभग 8 नरेशों को गद्दी पर बैठाया
कुमाऊँ का नेपाल से सम्बन्ध
- मौर्य सम्राट अशोक ने अपनी पुत्री चारूमिता का विवाह नेपाल के
- राजकुमार देवपाल से कराया
- हर्षवर्द्धन व नेपाल नरेश अंशुवर्मन के बीच मैत्रीभाव था
- प्रसिद्ध संत गुरु गोरखनाथ ने नेपाल में धर्म प्रचार किया था
- अल्मोंडा में घर-घर पूजा जाने वाला गंगनाथ जो नेपाल से ।
- कुमाऊँ आया था, वह स्वयं चंद वंशी राजकुमार था
- प्रसिद्ध फकीर गोपीचंद नेपाल का रहने वाला था
- नेपाली भाषा नेवारी व खसकुरी का प्रभाव कुमाऊँनी भाषा में दिखाई देता है कुमाऊँ का हिलजात्रा उत्सव नेपाल की देन है, नेपाल में इसे इन्द्रजात्रा कहते है
- कुमाऊँ में पीठ पर बोझा रखना देन भी नेपाल की है
- किरातो के बाद खसों ने भी कुमाऊँ व नेपाल में शासन किया, जिनके कारण खसकुरी भाषा का उद्भव हुआ
- नेपाल में लिच्छवी राजवंश ने शासन किया था
- गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त ने लिच्छवी राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह किया था
- सीरा से मल्लों का प्राचीनतम अभिलेख 1353 ई० व सोर से
- मल्लो का प्राचीनतम अभिलेख 1337 ई० का प्राप्त हुआ
चंदो का प्रशासनिक ढांचा
- महमूद गजनवी के आक्रमण समय सोमचंद कुमाऊँ आया था
- कत्यूरी राजाओं की उपाधि रजबार थी
- चंदो के राजकुमार अपने नाम से पहले कुँवर व गुसाई लगाते थे
- भारतीचंद के जाख ताम्रपत्र में पर्वतचंद के नाम से पूर्व कँवर लगा था और रत्नचंद के नाम के बाद कुँवर था, अतः रत्नचंद छोटा पुत्र हो सकता है
- चंद राजाओं की उपाधि श्रीराजाधिराज, महाराजा धिराज थी
- ताम्रपत्रो के उत्कीर्णकों को सुनार या सुदार कहा गया है।
- ताम्र पत्रों के लेखक जोशी होते थे जिन्हें जोइसी कहा गया
- चंदो के ताम्रपत्रों में राजाओं की वंशावली नहीं मिलती है, बल्कि कत्यूरियों के ताम्रपत्र में मिलती हैं
- केवल एक मात्र चंद राजा जगतचंद जिसके बरम ताम्रपत्र में उसके पिता का नाम मिलता है
- चंदो की प्रारम्भिक राजधानी चम्पावत थी, जो काली व चम्पावती नदी के तट पर थी
- चंदो की दूसरी राजधानी अल्मोड़ा या आलमनगर में कोसी नदी के तट पर बनी
- राजधानी के लिए बुंगा, राजापुर, राजधाई शब्द का प्रयोग हुआ है
चंदो का प्रशासनिक स्वरूप
- चंद राजाओं के सेनापति को बख्शी कहा जाता था
- चंदो के समय परामर्शदात्री महरा व फर्त्याल होते थे
- राजा के परामर्शदाताओं को ताम्रपत्र में पौरी पन्द्रह विश्वा कहा गया इनमें समस्त ब्रह्मण व अब्रह्मण नाई, धोबी, टम्टे आदि होते थे
- चंद राजाओं के दीवान जोशी हुआ करते थे, जिसमें शिवदेव जोशी,
- हरकदेव जोशी आदि बड़े विख्यात दीवान या प्रधानमंत्री हुए थे
- दीवान के नीचे मंत्री, सचिव होते थे, जिनकी संख्या 10 तक थी
- चंदो का राज्य मंडलो में विभक्त था
- मंडल दो प्रकार के थे- 1 सांमतों के अधीन 2.
- राजा द्वारा शासित सामंतो को रजबार की उपाधि जो राजा को वार्षिक कर देते थे
- सामंतो को ठक्कुर भी कहा जाता था
- मंडलो के नीचे देश होते थे, तल्ला देश, मल्लादेश आदि का उल्लेख मिलता है।
- शासन की सबसे छोटी ईकाई परगना या गर्खे होती थी
- परगने दो प्रकार के थे 1. नागरिक अधिकारी के अधीन 2. सैनिक कमांडर के अधीन
- नागरिक परगने के अधिकारी को सीकदार कहते थे
- सैनिक कमांडर का मुख्य बख्शी होता था
- चंदकाल के कुछ परगने-काली कुमाऊँ, सोर, सीरा, फल्दाकोट पाली पछाऊं, कोटली आदि
- तराई भाबर में 6 परगने थे जो निम्न हैं- बगसी, माल, बुक्साड़, मुंडिया, किलपुरी व छीनकी परगना
- परगने गर्यो में विभक्त थे, काली कुमाऊँ व माल में जिन्हें पट्टी कहते थे और सोर व सीरा और अन्य परगने में गर्खे कहते थे
- गर्खे का प्रशासक नेगी होते थे और गर्खे गाँव में विभक्त थे,
- गांव के मुख्य को सयाना या बूढ़ा कहते थे
- डाकिया राजा को देय गल्ला छहाड़ा वसूल करता था
- पंच नवीसी नामक पंचायती- कचहरी चंदो के समय थी, इसे चारथान भी कहते थे और दंडाधिकारी को डंड़ै कहा गया
- चंदो के समय सीराकोट कुख्यात कारागार था, यहां राजा दीपचंद को रखा गया था
- कुमाऊँ चंद प्रशासन का विभाजन इस प्रकार बँटा हुआ था चंद राज्य- मंडल- देश- परगने- गर्खे- गांव
- चंद राज्य का प्रशासन कई भागों में विभक्त है- चार बूढा, पाँच थोक, चार चौथानी, पौरी पंद्रह विश्वा आदि
- चार बूढ़ा के अन्तर्गत कार्की, बोरा, तडागी व चौधरी आते थे
- पाँच थोक के अन्तर्गत महरा, फर्त्याल, देव, ढेक व खड़ायत आते थे
- पंच पीडिया वर्ग के अन्तर्गत चार चौथानी व 6 छरिया ब्राह्मण लोग आते थे
चंदो की भूराजस्व नीति
कौटिल्य के सप्तांग राज्य सिद्धान्त के अन्तर्गत सात अंगो का वर्णन मिलता है, उनमें एक अंग कोष हैचंदो के समय राजा जिनको रौत, गूंठ के रूप में जमीन देता था। उसे थातवान कहते हैं
खायकर कर के रूप में अनाज व नकदी दोनों के रूप में देता था
सिरतान जो नकद के रूप में कर देता था
सिरतान जो नकद के रूप में कर देता था
चंदो के समय कैनी भू-दास होते थे
राजा किसी व्यक्ति को बहादुरी के लिए रौत या पुरस्कार के रूप में जमीन देता था
राजा किसी व्यक्ति को बहादुरी के लिए रौत या पुरस्कार के रूप में जमीन देता था
गल्ला छहाड़ा एक प्रकार का भू-राजस्व था, जो सामान्यतः अनाज का छठा भाग होता था।
पधान हर गांव में होता था, वह मालगुजारी वसूल करता था
पधान हर गांव में होता था, वह मालगुजारी वसूल करता था
पधान पद वंशानुगत होता था
पधान के नीचे कोटल होता था, जो पधान के लेखक का काम करता था
विष्णुप्रिति या गूंठ भूमि जो प्रायः मंदिरो को दान दी जाती थी
भूमि माप की ईकाई नाली, ज्यूला, अधाली व मसा आदि थी
पधान के नीचे कोटल होता था, जो पधान के लेखक का काम करता था
विष्णुप्रिति या गूंठ भूमि जो प्रायः मंदिरो को दान दी जाती थी
भूमि माप की ईकाई नाली, ज्यूला, अधाली व मसा आदि थी
एक मसा दो किलो से कम माप का व ज्यूला दस कुतंल के बराबर होता था और अधाली लगभग 15 किलो या आठ नाली होता था
बीस नाली भूमि जो एकड़ के बराबर होती है, जिसे विश्वा भी कहा जाता है
छ्यौड़ा घरेलू नौकर या दास होते थे
दासियों को छयोड़ी कहा जाता था
अस्कोट के रजबार छयोडों को सेवक या विश्वा कहते थे।
चंदो के समय 36 राजकर थे, जिन्हें छतीसी कहा जाता था
बीस नाली भूमि जो एकड़ के बराबर होती है, जिसे विश्वा भी कहा जाता है
छ्यौड़ा घरेलू नौकर या दास होते थे
दासियों को छयोड़ी कहा जाता था
अस्कोट के रजबार छयोडों को सेवक या विश्वा कहते थे।
चंदो के समय 36 राजकर थे, जिन्हें छतीसी कहा जाता था
चंदो के समय सभी करों के नाम छतीस रकम व बतीस कलम था, जिसके अन्दर 68 कर थे
चंदो के समय कुछ प्रमुख कर इस प्रकार
ज्यूलिया- नदी पुलों पर लगने वाला कर, इसे सांगा भी कहते थेसिरती- नकद कर था, और प्रायः माल भाबर व भोटिया व्यापारियों से वसूला जाता था
राखिया - रक्षाबंधन व जनेऊ-संस्कार के समय
मांगा- युद्ध के समय लिया जाने वाला कर
खेनी-कपीलीनी- कुली बेगार कर
राखिया - रक्षाबंधन व जनेऊ-संस्कार के समय
मांगा- युद्ध के समय लिया जाने वाला कर
खेनी-कपीलीनी- कुली बेगार कर
बैकर- अनाज के रूप में देय कर
कटक-सेना के लिए लिया जाने वाला कर
टांड कर - सूती वस्त्रों के बुनकरों से लिया जाने वाला
मिझारी-कामगरों से लिया जाने वाला कर
साहू- लेखक को देय कर, जिसे साउलि भी कहा जाता है।
रंतगली- मूनाकोट ताम्रपत्र. मे वर्णन लेखक को देय कर
कूत-नकद के बदले दिया जाने वाला अनाज
कटक-सेना के लिए लिया जाने वाला कर
टांड कर - सूती वस्त्रों के बुनकरों से लिया जाने वाला
मिझारी-कामगरों से लिया जाने वाला कर
साहू- लेखक को देय कर, जिसे साउलि भी कहा जाता है।
रंतगली- मूनाकोट ताम्रपत्र. मे वर्णन लेखक को देय कर
कूत-नकद के बदले दिया जाने वाला अनाज
भेंट- राजा व राजकुमारों को दी जाने वाली भेंट
सीकदार नेगी-परगनाधिकारी को देय कर
कनक-शौका व्यापारियों से स्वर्ण धूल के रूप में
डाला- गांव के सयाने को देय कर
मौ- हर परिवार पर लगा हुआ कर
भात-कर- बड़े उत्सवों में भात की दावत
भाग कर-घराटों पर लगने वाला कर
न्यौवली कर-न्याय पाने के लिए देय कर - रोल्य- देवल्या- राजपरिवार के देवी-देवताओं की पूजा के नाम
बजनिया-राजा के नर्तकों व नर्तकियों के लिए
चोपदार-राजा के मालवाहक या सामान ढोने वालों के लिए
सीकदार नेगी-परगनाधिकारी को देय कर
कनक-शौका व्यापारियों से स्वर्ण धूल के रूप में
डाला- गांव के सयाने को देय कर
मौ- हर परिवार पर लगा हुआ कर
भात-कर- बड़े उत्सवों में भात की दावत
भाग कर-घराटों पर लगने वाला कर
न्यौवली कर-न्याय पाने के लिए देय कर - रोल्य- देवल्या- राजपरिवार के देवी-देवताओं की पूजा के नाम
बजनिया-राजा के नर्तकों व नर्तकियों के लिए
चोपदार-राजा के मालवाहक या सामान ढोने वालों के लिए
घोड़यालों-राजा के घोड़ो के लिए
कमीनचारी-सयानचारी- सयानों को देय कर जो किसानों से वसूल करते है
कमीनचारी-सयानचारी- सयानों को देय कर जो किसानों से वसूल करते है
हिलयानि-अधूल कर बरसात में सड़को की मरम्मत के लिए | लिया जाने वाला कर
पौरी कर - राजधानी की रखवाली के लिए देय कर, इसे पहरी भी कहा जाता है
बाजदार-महाजनों को देय कर औताली राजा की जमीन होती थी
पौरी कर - राजधानी की रखवाली के लिए देय कर, इसे पहरी भी कहा जाता है
बाजदार-महाजनों को देय कर औताली राजा की जमीन होती थी
चंदो की सामाजिक व्यवस्था
- चंद राजा चंद्रवंशीय राजपूत थे
- कत्यूरी राजाओं का मूल निवास राजस्थान था
- नाली शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग तमिल साहित्य में मिलता है
- ओझा नामक ब्राह्मण व रावत नामक राजपूत कत्यूरी राजाओं के समय यहां आए थे
- जोशी व पंत नामक ब्राह्मण कुमाऊँ में महाराष्ट्र से आए थे
- बसेड़े राजपूत राजंस्थान के बांसवाड़े से कुमाऊँ आए
- कुमाऊँ के सबसे प्राचीनतम देवता एड़ी व घुरूड़िया हैं, दोनों देवताओं को पशुचारको द्वारा पूजे जाते है
- घुरूड़िया देवता को ग्वाल देवता भी कहा जाता है
- कुमाऊँ में ब्राह्मणों के तीन वर्ग थे चौथानी, पंचबिड़िया, खस ब्राह्मण
- राजपूत भी दो प्रकार के थे आर्य-राजपूत व खस राजपूत
- वैश्य-वर्ग के लिए साहू का प्रयोग किया गया
- कुमाऊँ में उत्कीर्णक का काम सुनार व टम्टा करते थे
- पौरी राजमहल की चौकदारी करते थे
- बैजनाथ के मंदिरो में लक्ष्मीनारायण का मन्दिर चंदो ने बनाया
उत्तराखण्ड क्षेत्र के प्रमुख किले
- लालमंडी किला - अल्मोड़ा पल्टन बाजार 1563 में कल्याण चंद ने बनाया इसे फोर्ट मोयरा भी कहते है
- खगमरा किला - अल्मोड़ा में राजा भीष्मचंद ने बनाया
- मल्ला महल किला - रूद्रचंद ने अल्मोड़ा में • राजबुंगा किला - चम्पावत में सोमचंद ने
- नैथड़ा किला - अल्मोंडा में गोरखाकालीन
- सिरमोही किला - लोहाघाट, चम्पावत
- बाणासुर किला - चम्पावत, स्थानीय नाम मारकोट
- गोल्ला चौड़- चम्पावत मे राजा गोरिल ने बनाया • बैराट का किला - कालसी के निकट
- खंलगा या नालापानी किला - देहरादून
- कलुवागढ़ी किला - रूड़की के ग्राम रांझा
- रूद्रपुर का किला - काशीपुर में शिवदेव जोशी ने
चंद वंश से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न
- चंदो व मुगलो के सम्बन्ध का वर्णन मिलता है - जहांगीरनामा व शाहनामा
- पक्षी आखेट पर राजा रूपचंद द्वारा लिखित ग्रंथ- श्यैनिक शास्त्र
- नेपाल में धर्म प्रचार-प्रसार किस संत ने किया- गुरु गोरखनाथ
- अल्मोड़ा में घर-घर पूजा जाने वाला प्रसिद्ध देवता है- गंगनाथ कुमांऊँ में प्रचलित हरेला, हिलजात्रा, घी-त्योहार व ओलग प्रथा नेपाल की देन है।
- किस ताम्रपत्र से चंदो के करो का उल्लेख मिलता है- मूनाकोट ताम्रपत्र
- चंद काल में कुख्यात कारागर था- सीराकोट पिथौरागढ
- ताम्रपत्र उत्कीर्णको को चंदो के समय कहा जाता था - सुनार
- किस के समय तराई क्षेत्र से 9लाख आय होती थी- जगतचंद
- भोटियो व हुणिया पर किसने सिरती नामक कर लगाया- बाजबहादुर चंद
- एक अधाली बराबर होता था- आठ नाली
- ज्यूला व सिरती नामक कर लगाने का श्रेय जाता है- लक्ष्मीचंद
- किस चंद शासक के पंवाड़े प्रसिद्ध है- भारतीचंद
- किस पुस्तक में थोहरचंद का उल्लेख मिलता है
किंगडम ऑफ नेपाल
- किगंडम आफ नेपाल के लेखक है-हैमिल्टन
- चंद वंश का सबसे पुरातन अभिलेख राजा अभयचंद का है
- नकुलेश्वर मंदिर के पास भगवान बुद्ध की भूमि स्पर्श मुद्रा में मूर्ति है
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