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श्री देव सुमन: टिहरी का अमर शहीद|Shri Dev Suman: The immortal martyr of Tehri| MCQ Related to MCQ

श्री देव सुमन: टिहरी का अमर शहीद|Shri Dev Suman: The immortal martyr of Tehri|

श्री देव सुमन: टिहरी का अमर शहीद 

"गांव से विचार क्रांति तक: एक बालक का महापुरुष बनने का सफर"


श्री देव सुमन के बारे में 

भारत का स्वतंत्रता संग्राम अनेक महान नायकों की धरती रहा है, परंतु कुछ ऐसे वीर सपूत हैं जिन्हें राष्ट्रीय इतिहास में वह स्थान नहीं मिला, जिसके वे अधिकारी थे। श्री देव सुमन का नाम ऐसा ही है। एक युवा, विचारशील, निर्भीक, और गांधीवादी मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति, जिसने न केवल ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बल्कि अपनी ही रियासत – टिहरी रियासतके क्रूर प्रशासन के विरुद्ध आवाज उठाई। उनका जीवन न केवल बलिदान की कहानी है, बल्कि एक वैचारिक आंदोलन का प्रतीक भी है।


जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि

श्री देव सुमन का जन्म 25 मई 1916, गढ़वाल की सुरम्य वादियों में स्थित जौल गाँव (पट्टी जौनपुर, टिहरी गढ़वाल) में एक साधारण ब्राह्मण परिवार में श्रीदेव सुमन का जन्म हुआ। उनके पिता बल्देव दत्त उनियाल धार्मिक प्रवृत्ति के साथ-साथ समाज में सम्मानित व्यक्ति थे। परिवार आर्थिक दृष्टि से संपन्न नहीं था, लेकिन संस्कारों और शिक्षा का वातावरण घर में हमेशा रहा।

छोटे सुमन का बाल्यकाल पहाड़ की प्राकृतिक गोद में बीता – जहाँ जीवन साधारण था लेकिन चुनौतियाँ अपार। यह वहीं समय था जब भारत में आज़ादी की माँग धीरे-धीरे जनता के दिलों में आकार ले रही थी, और बाल सुमन अनजाने ही इस विचार से आकर्षित हो रहे थे।


शिक्षा और बौद्धिक जागृति

सुमन की प्रारंभिक शिक्षा टिहरी में हुई। वे छात्र जीवन से ही मेधावी, अनुशासित और स्वतंत्र विचारों वाले थे। सामान्य पाठ्यक्रम के साथ-साथ उन्हें भारतीय इतिहास, संस्कृति, और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन विशेष प्रिय था।

बाद में उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए देहरादून और फिर लाहौर का रुख किया। यह समय भारतीय राजनीति में हलचल का था – भगत सिंह, नेहरू, गांधी, सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं के विचार और आंदोलन देशभर में आग की तरह फैल रहे थे।

लाहौर में पढ़ाई के दौरान उन्होंने क्रांतिकारी विचारों से साक्षात्कार किया। उनका संपर्क ऐसे युवाओं से हुआ जो अंग्रेज़ी सत्ता के खिलाफ सशस्त्र क्रांति की बात कर रहे थे। हालांकि, सुमन ने गांधी जी की अहिंसात्मक विचारधारा को अपने जीवन का मार्ग चुना।


गांधीजी का प्रभाव और विचारधारा की दिशा

महात्मा गांधी के आदर्शों ने सुमन के मन में एक स्थायी छाप छोड़ी। उन्होंने गांधीजी की सत्य, अहिंसा, सविनय अवज्ञा और स्वदेशी जैसे सिद्धांतों को न केवल पढ़ा, बल्कि उन्हें आत्मसात किया। उन्होंने खादी पहनना शुरू किया, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया और ‘स्वराज्य’ की भावना को आत्मा में बसा लिया।

जिस दिन जनता को अपनी शक्ति का अहसास हो जाएगा, उस दिन कोई तानाशाही जीवित नहीं बचेगी।” – श्रीदेव सुमन

सुमन जी ने महसूस किया कि टिहरी रियासत केवल भारत से भौगोलिक रूप से जुड़ी नहीं है, बल्कि उसकी आज़ादी भी भारत की आज़ादी से जुड़ी होनी चाहिए।


लेखन, भाषण और जनजागरण का आरंभ

स्वतंत्रता संग्राम की एक विशेषता यह थी कि उसमें लेखनी ने भी तलवार से अधिक कार्य किया। श्रीदेव सुमन ने इस शक्ति को पहचाना और लेखन तथा पत्रकारिता को अपनी आवाज़ बनाया।

श्रीदेव सुमन ने ‘जागर’, ‘युगवाणी’, जैसे पत्रों में लेख लिखे। इन लेखों में वे शोषण के खिलाफ मुखर थे। उनके लेखों में सत्य की धार और जनता की पीड़ा का सजीव चित्रण होता था।

श्रीदेव सुमन गाँव-गाँव जाकर सभा करते, भाषण देते, और लोगों को जागरूक करते कि “राजा तुम्हारा भगवान नहीं, बल्कि तुम्हारी सेवा करने वाला एक जिम्मेदार होता है।”


सामाजिक क्रांति की ओर पहला कदम

टिहरी रियासत उस समय सत्तावादी, सामंती और क्रूर नीतियों के लिए कुख्यात थी। राजा और दरबारी जनता से मनमाने कर वसूलते थे, स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ने वालों पर जुल्म करते थे और विरोध की हर आवाज़ को कुचलने की नीति अपनाई जाती थी।

देव सुमन ने इस व्यवस्था के खिलाफ सबसे पहले लोक जागरण की शुरुआत की। उन्होंने जनता से कहा कि अगर भारत स्वतंत्र हो सकता है, तो टिहरी रियासत भी शोषण से मुक्त हो सकती है।


स्मरणीय प्रसंग

एक बार श्रीदेव सुमन ने एक सार्वजनिक सभा में कहा: राजा की शक्ति जनता की चुप्पी से है। यदि यह चुप्पी टूट गई, तो सिंहासन हिल जाएगा।”

यह बात सुनकर दरबारी क्रुद्ध हो उठे। टिहरी प्रशासन को अहसास हुआ कि अब सुमन एक खतरा बन चुके हैं – एक वैचारिक बम जो पूरे टिहरी को बदल सकता है।

 

श्री देव सुमन: टिहरी का अमर शहीद

टिहरी रियासत की क्रूरता और संघर्ष की शुरुआत”


टिहरी रियासत का राजनीतिक परिदृश्य

टिहरी गढ़वाल रियासत ब्रिटिश राज के समय एक देशी रियासत थी, जिसका शासक स्वयं को राजा मानता था और शासन में ब्रिटिश संप्रभुता के अधीन रहते हुए जनता पर दमन करता था। रियासत के राजा नरेन्द्र शाह थे, जिन्हें ब्रिटिश साम्राज्य ने मान्यता दी थी।

टिहरी में:

  • जनता को किसी भी प्रकार की स्वतंत्रता प्राप्त नहीं थी,
  • प्रजा अपने ही घरों में परायों जैसी थी,
  • राजा की बात ही कानून थी,
  • विरोध का मतलब था बंदीगृह या उत्पीड़न।

कर व्यवस्था: शोषण का सबसे बड़ा हथियार

रियासत की अर्थव्यवस्था पूरी तरह किसानों और मजदूरों के शोषण पर आधारित थी। जनता पर थोपे गए कर:

  • नकद कर (Cash Taxes)
  • अन्न कर (Grain Tax)
  • घोड़ों, गायों, लकड़ी तक पर कर
  • राजकार्य (बिना वेतन मजदूरी)

गरीब किसान एक ओर अंग्रेज़ों से पीड़ित थे और दूसरी ओर अपने ही राजा द्वारा शोषित।


श्रीदेव सुमन का टिहरी लौटना

श्रीदेव सुमन लाहौर और देहरादून में शिक्षा तथा स्वतंत्रता आंदोलनों से गहरे रूप में प्रभावित होकर टिहरी लौटे। लेकिन वे अब एक सामान्य युवा नहीं थे — वे विचारों के योद्धा बन चुके थे।

उनके मन में एक ही लक्ष्य था —

टिहरी को भी आज़ाद कराना है।”


श्रीदेव सुमन द्वारा प्रजा मंडल आंदोलन की स्थापना

1938–39 के दौरान श्रीदेव सुमन जी ने प्रजा मंडल आंदोलन की नींव रखी। इसका उद्देश्य था:

  • टिहरी की प्रजा को संगठित करना
  • जनता को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना
  • रियासत के दमनकारी शासन के खिलाफ शांतिपूर्ण आंदोलन
  • भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से टिहरी को जोड़ना

श्रीदेव सुमन ने गाँव-गाँव जाकर सभाएँ कीं, घरों में बैठकें कीं, और पत्र-पत्रिकाओं के ज़रिए आंदोलन की लौ जलाना शुरू किया।


लेखनी की तलवार: शब्दों से क्रांति

श्रीदेव सुमन ने सुमन ने टिहरी में रहकर लेखन को हथियार बनाया। उन्होंने जनता को उनके अधिकारों की जानकारी देने के लिए:

  • प्रचार-पत्रक बांटे
  • कविताएँ लिखीं
  • राजा की नीतियों की खुली आलोचना की
  • जागर’ और ‘युगवाणी’ पत्रों में क्रांतिकारी लेख लिखे

उनके लेखों से जनता के भीतर क्रांति की चेतना फैलने लगी।


प्रशासन की प्रतिक्रिया और सख्ती

श्री देव सुमन के प्रभाव से भयभीत होकर टिहरी प्रशासन ने उनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई करने की योजना बनाई।

उन पर आरोप लगाए गए:

  • राज-द्रोह (Sedition)
  • जनता को भड़काने का आरोप
  • राजा की अवमानना


श्रीदेव सुमन की पहली गिरफ्तारी (1939)

1939 में श्री देव सुमन जी को पहली बार गिरफ्तार किया गया जब वे एक जनसभा में राजा की नीतियों की आलोचना कर रहे थे। उन्हें टिहरी जेल में रखा गया, और बिना मुकदमे के कई दिन तक रखा गया।

जेल में क्या हुआ?

  • खाने में कीड़े और गंदगी
  • सोने को न चटाई, न कंबल
  • गालियाँ, धमकियाँ, और शारीरिक यातना
  • मानसिक तोड़ने के प्रयास

पर सुमन जी दृढ़ रहे। उन्होंने कहा:

मैं राजा का बंदी नहीं, प्रजा का सेवक हूँ।”


रिहाई के बाद भी सक्रियता

जेल से रिहा होने के बाद श्री देव सुमन रुके नहीं। अब वे और अधिक सक्रिय हो गए। उन्होंने राजा को एक खुला पत्र लिखा, जिसमें कहा गया:

आपके सिंहासन की नींव अन्याय और अज्ञान पर है, और यह नींव अब हिल चुकी है।”


ब्रिटिश शासन और रियासत: मिलीभगत

ब्रिटिश सरकार ने टिहरी रियासत को एक बफर ज़ोन की तरह इस्तेमाल किया। इसलिए रियासत को खुली छूट थी कि वह जनता पर जैसा चाहे शासन करे। ब्रिटिश अफसरों को लगता था कि श्री देव सुमन जैसा युवक टिहरी की स्थिरता के लिए खतरा है।

इसीलिए जब श्री देव सुमन जी ने भारत की स्वतंत्रता की मांगों के साथ टिहरी की आज़ादी को भी जोड़ा, तो यह बात शासकों को नागवार गुज़री।


विचारधारा का विस्तार

अब सुमन जी केवल एक स्थानीय नेता नहीं रह गए थे — वे राजशाही के विरुद्ध जनमत तैयार करने वाले विचारक बन चुके थे। उन्होंने रियासत के ज़रिए पूरे भारत की जनता के सामने एक उदाहरण रखा कि असली स्वतंत्रता तब है जब आम जन भी स्वराज महसूस करे।

 

राजशाही के विरुद्ध संघर्ष की शुरुआत और सार्वजनिक चेतना का निर्माण

 टिहरी रियासत में सामंती अत्याचार की स्थिति

1930 के दशक में टिहरी रियासत एक सामंती शासन के अधीन थी जहाँ राजा की मर्जी ही कानून थी। जनता को ज़मींदारों और अधिकारियों के द्वारा शोषण, कर, जबरदस्ती श्रम (बेगार), और सामाजिक अन्याय का सामना करना पड़ता था।

  • शिक्षा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध था।
  • स्थानीय जनता को न्यूनतम अधिकार भी प्राप्त नहीं थे।
  • लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति शासन का दृष्टिकोण शत्रुतापूर्ण था।


युवावस्था में वैचारिक परिपक्वता और जागरूकता

श्री देव सुमन जी ने बनारस में अध्ययन करते हुए भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन, महात्मा गांधी के विचारों, और सत्याग्रह की नीति को गहराई से आत्मसात किया। वहाँ उनके विचारों में स्पष्टता आई:

  • उन्हें अहिंसक क्रांति में गहरा विश्वास था।
  • टिहरी जैसी पिछड़ी रियासत में लोकतंत्र और जन अधिकारों की बात करने वाले बहुत कम लोग थे — देव सुमन उनमें अग्रणी बने।


"सुमन संदेश" का प्रकाशन: अभिव्यक्ति की मशाल

1938 में श्री देव सुमन ने एक हस्तलिखित पत्रिका सुमन संदेश” निकाली। इसका उद्देश्य था:

  • जनता को रियासत की अन्यायपूर्ण नीतियों से अवगत कराना।
  • जन-चेतना को जागृत करना।
  • स्वतंत्रता और समानता के विचारों को गाँव-गाँव तक पहुँचाना।

विषय-वस्तु में शामिल थे:

  • अन्याय का विरोध,
  • स्वराज की आवश्यकता,
  • गांधीजी के विचारों का प्रचार,
  • जन-संवाद की शुरुआत।

"सुमन संदेश" टिहरी रियासत की नींद तोड़ने वाली पहली क्रांतिकारी लेखनी थी।


टिहरी राज्य के अधिकारियों की प्रतिक्रिया

राजा और राज्य के नौकरशाह "सुमन संदेश" और देव सुमन की गतिविधियों से घबरा गए:

  • सुमन जी को गुप्तचर निगरानी में रखा गया।
  • पत्रिका पर प्रतिबंध लगाने के प्रयास हुए।
  • उन्हें गिरफ्तार करने की धमकियाँ मिलने लगीं।

लेकिन श्री देव सुमन जी डरने वालों में नहीं थे — उनका ध्येय था "न्याय का रास्ता, चाहे कीमत कोई भी हो।"


गाँव-गाँव जाकर आंदोलन की ज्वाला

सुमन जी ने टिहरी के अलग-अलग गाँवों में जाकर जनसभाएँ, प्रचार-प्रसार और छोटी बैठकों के माध्यम से लोगों को संगठित किया:

  • वह जनता से कहते थे:

डरिए मत, यह राज्य आपका है, राजा नहीं। आवाज़ उठाइए अन्याय के विरुद्ध।”

  • उन्होंने विशेष रूप से युवाओं को संगठित किया और उन्हें जनसेवक बनाया।


अहिंसा और सत्याग्रह की ओर बढ़ते कदम

श्री देव सुमन जी ने गांधी जी के नमक सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन से प्रेरणा लेकर टिहरी में भी स्थानीय सत्याग्रह शुरू करने का निश्चय किया।

उनका दृष्टिकोण:

  • "हथियारों से नहीं, विचारों से क्रांति होगी।"
  • "हम खून नहीं बहाएँगे, बल्कि अन्याय के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध करेंगे।"


धर्म, संस्कृति और राष्ट्रवाद का समन्वय

देव सुमन ने अपने भाषणों में गढ़वाल की सांस्कृतिक परंपराओं और धर्म की शक्ति को जनजागरण के माध्यम के रूप में प्रयोग किया।

यदि हम अपने गाँव, अपनी संस्कृति और अपने अधिकारों की रक्षा नहीं कर सके, तो हम अपने पूर्वजों के बलिदानों को व्यर्थ करेंगे।”


एक नेता का उदय

इस चरण में श्री देव सुमन केवल एक युवा नहीं, बल्कि एक जननेता बन चुके थे।

  • उनके अनुयायी उन्हें "गढ़वाल का गांधी" कहने लगे।
  • हर वर्ग – किसान, मजदूर, युवा, महिलाएँ – उनके विचारों से जुड़ने लगे।


श्रीदेव सुमन का जेल जीवन और आत्मबलिदान

गिरफ्तारी की पृष्ठभूमि

1938 से 1943 के मध्य टिहरी राज्य की तानाशाही और सामंती व्यवस्था के विरोध में श्रीदेव सुमन लगातार जनजागरण कर रहे थे। उन्होंने जनता को संगठित कर राजशाही के विरुद्ध आवाज़ उठाई। वे गाँधीवादी अहिंसात्मक आंदोलन के प्रबल समर्थक थे। उनकी बढ़ती लोकप्रियता और प्रभाव से टिहरी नरेश घबरा गए।

  • सुमन जी को 30 दिसंबर 1943 को गिरफ्तार कर लिया गया।
  • उन पर आरोप था कि वे प्रजा को राजा के विरुद्ध भड़का रहे हैं और व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं।


जेल में अमानवीय अत्याचार

श्री देव सुमन टिहरी राज्य की जेल में कैद किया गया, जहाँ उनके साथ अभूतपूर्व अमानवीयता की गई:

  • उन्हें सीलन भरे अंधेरे, गंदे और संकीर्ण कोठरी में बंद किया गया।
  • भोजन में कीड़े मिले चावल और सड़ी रोटियाँ दी जाती थीं।
  • उन्हें पानी तक नहीं दिया जाता, कई बार गोबर मिला खाना जबरदस्ती खिलाने की कोशिश की गई।
  • पत्र लिखने, किताबें पढ़ने, और बाहरी संपर्क की अनुमति नहीं दी गई।

श्री देव सुमन के शरीर को तोड़ने के लिए उन्हें लगातार मानसिक और शारीरिक यातनाएँ दी गईं।


भूख हड़ताल की शुरुआत

इस अन्याय और उत्पीड़न के खिलाफ श्री देव सुमन ने 3 मई 1944 से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी।

  • श्री देव सुमन का एक ही उद्देश्य था — या तो राजा अन्याय बंद करे, या वे प्राण त्याग देंगे।
  • श्री देव सुमन ने बापू के सिद्धांत को जीवन में उतारते हुए कहा:
    "मरना स्वीकार है, पर अन्याय के सामने झुकना नहीं।"


शारीरिक स्थिति और प्रताड़ना

भूख हड़ताल के 20वें दिन बाद उनका शरीर कमजोर होने लगा:

  • 30वें दिन पर वे बोल नहीं पा रहे थे।
  • 40वें दिन उन्हें बिस्तर से उठना भी कठिन हो गया।
  • 60वें दिन शरीर केवल हड्डियों का ढाँचा रह गया।

इसके बावजूद राजशाही ने कोई सुनवाई नहीं की। उनके समर्पण, धैर्य और दृढ़ निश्चय ने जेल अधिकारियों तक को झकझोर दिया।


बलिदान: 25 जुलाई 1944

लगभग 84 दिनों की भूख हड़ताल के बाद, 25 जुलाई 1944 को श्रीदेव सुमन ने टिहरी की जेल में अंतिम साँस ली।

  • श्री देव सुमन का शरीर इतना दुर्बल हो चुका था कि आत्मा स्वयं शरीर से विदा हो गई।
  • जेल प्रशासन ने श्री देव सुमन के शव को चुपचाप रात के अंधेरे में भगीरथी नदी में बहा दिया, ताकि जनता में आक्रोश न फैले।


बलिदान की प्रतिक्रिया

श्री देव सुमन की मृत्यु की खबर जंगल में आग की तरह फैली:

  • टिहरी, श्रीनगर, ऋषिकेश, देहरादून, चंबा और जौनसार तक विरोध प्रदर्शन हुए।
  • जनता ने नारा लगाया:
    श्रीदेव सुमन अमर रहें!”
    राजशाही हटाओ, जनतंत्र लाओ!”
  • सुमन के बलिदान ने टिहरी रियासत की नींव हिला दी। यह बलिदान टिहरी के लोकतांत्रिक आंदोलन की चिंगारी बन गया।


सुमन: उत्तराखंड का शहीद-ए-आज़म

  • श्रीदेव सुमन को आज उत्तराखंड का भगत सिंह”, लोकनायक”, और बलिदानी सपूत” कहा जाता है।
  • उन्होंने एक अकेले इंसान के रूप में पूरा सामंतशाही तंत्र हिला दिया।
  • उनका जीवन दिखाता है कि सत्य, अहिंसा और आत्मबल के आगे कोई भी सत्ता टिक नहीं सकती।


अंतिम संदेश

मरने से पहले उन्होंने लिखा था (अनुमानित पंक्तियाँ):

मैं मर रहा हूँ, पर मेरी आत्मा इस भूमि में न्याय के बीज बो रही है। जब ये बीज फूटेंगे, तब इस धरती पर जनतंत्र का सूर्य उगेगा।”


श्रीदेव सुमन का जेल जीवन और बलिदान केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक, नैतिक और राजनीतिक प्रकाश स्तंभ है। उन्होंने अपने शरीर को तपाकर उस ध्वज को उठाया, जिसे आज उत्तराखंड में लोकतंत्र की नींव माना जाता है।



श्री देव सुमन से संबंधित प्रमुख घटनाक्रम

  •  25 मई 1916श्री देव सुमन का जन्म टिहरी गढ़वाल के जौल गाँव में हुआ।
  • श्री देव सुमन ने प्रारंभिक शिक्षा चम्बाखाल प्राइमरी स्कूल से प्राप्त की।
  • श्री देव सुमन ने टिहरी और आसपास के क्षेत्रों में माध्यमिक और उच्च शिक्षा पूरी की।
  • श्री देव सुमन ने पंजाब विश्वविद्यालय से रत्न, भूषण, प्रभाकर और विशारद उत्तीर्ण किए।
  • श्री देव सुमन ने कविता संग्रह सुमन सौरभ’ प्रकाशित किया।
  • श्री देव सुमन ने हिन्दू, धर्मराज और राष्ट्रमत समाचार पत्रों में लेख लिखे।
  • श्री देव सुमन ने हिमालय सेवा संघ की स्थापना की।
  • 1939 में श्री देव सुमन ने टिहरी प्रजा मंडल आंदोलन शुरू किया।
  • श्री देव सुमन ने राज्य प्रशासन और राजा के अत्याचार के खिलाफ जनता को जागरूक किया।
  • श्री देव सुमन ने लेख, भाषण और प्रदर्शन के माध्यम से आंदोलन को गति दी।
  • 1942 में श्री देव सुमन को गिरफ्तार किया गया और टिहरी जेल में रखा गया।
  • 1944 में श्री देव सुमन ने 84 दिन का आमरण अनशन शुरू किया।
  • 25 जुलाई 1944 को श्री देव सुमन ने टिहरी जेल में बलिदान दिया।
  • श्री देव सुमन के बलिदान के कारण उन्हें ‘टिहरी का अमर शहीद’ कहा गया।
  • श्री देव सुमन के संघर्ष से टिहरी रियासत में प्रजा मंडल को वैधानिक स्थान मिला।
  • श्री देव सुमन ने जनता में लोकतंत्र, न्याय और समानता की जागरूकता बढ़ाई।

श्री देव सुमन पर आधारित MCQs

श्री देव सुमन का जन्म कब हुआ था?
A) 25
मई 1915
B) 25
मई 1916
C) 25
जुलाई 1916
D) 25
जनवरी 1916
उत्तर: B) 25 मई 1916

 

श्री देव सुमन का जन्म स्थान कहाँ था?
A)
श्रीनगर, गढ़वाल
B)
जौल, टिहरी गढ़वाल
C)
देहरादून
D)
पौड़ी
उत्तर: B) जौल, टिहरी गढ़वाल

 

श्री देव सुमन के पिता का नाम क्या था?
A)
हरिराम बडोनी
B)
पं. हरिराम बडोनी
C)
रामनिवास बडोनी
D)
हरिपाल बडोनी
उत्तर: B) पं. हरिराम बडोनी

 

श्री देव सुमन की माता का नाम क्या था?
A)
तारा देवी
B)
सरला देवी
C)
विमला देवी
D)
राधा देवी
उत्तर: A) तारा देवी

 

श्री देव सुमन का बचपन का नाम क्या था?
A)
श्रीदत्त बडोनी
B)
देवेंद्र बडोनी
C)
देवदत्त बडोनी
D)
सुमन बडोनी
उत्तर: A) श्रीदत्त बडोनी

 

श्री देव सुमन की प्रारंभिक शिक्षा कहाँ से हुई थी?
A)
चम्बाखाल प्राइमरी स्कूल
B)
टिहरी मिडिल स्कूल
C)
देहरादून स्कूल
D)
जौल स्कूल
उत्तर: A) चम्बाखाल प्राइमरी स्कूल

 

श्री देव सुमन ने टिहरी से कौन सी परीक्षा उत्तीर्ण की थी?
A)
हिंदी मिडिल परीक्षा
B)
हाई स्कूल परीक्षा
C)
इंटरमीडिएट परीक्षा
D)
बीए परीक्षा
उत्तर: A) हिंदी मिडिल परीक्षा

 

श्री देव सुमन ने किस विश्वविद्यालय से रत्न, भूषण, प्रभाकर और विशारद की परीक्षाएँ उत्तीर्ण की थीं?
A)
पंजाब विश्वविद्यालय
B)
दिल्ली विश्वविद्यालय
C)
इलाहाबाद विश्वविद्यालय
D)
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय
उत्तर: A) पंजाब विश्वविद्यालय

 

श्री देव सुमन ने किस विद्यालय में अध्यापन कार्य शुरू किया था?
A)
देहरादून के नेशनल स्कूल
B)
टिहरी मिडिल स्कूल
C)
दिल्ली के सेंट स्टीफेंस स्कूल
D)
इलाहाबाद के सेंट जोसेफ स्कूल
उत्तर: A) देहरादून के नेशनल स्कूल

 

श्री देव सुमन ने किस साहित्यिक सम्मेलन से 'विशारद' की परीक्षा उत्तीर्ण की थी?
A)
हिंदी साहित्य सम्मेलन
B)
संस्कृत साहित्य सम्मेलन
C)
अंग्रेजी साहित्य सम्मेलन
D)
पंजाबी साहित्य सम्मेलन
उत्तर: A) हिंदी साहित्य सम्मेलन

 

श्री देव सुमन ने किस वर्ष 'सुमन सौरभ' नामक कविता संग्रह प्रकाशित किया था?
A) 1936
B) 1937
C) 1938
D) 1939
उत्तर: B) 1937

 

श्री देव सुमन ने किस समाचार पत्र का संपादन किया था?
A)
हिन्दू
B)
धर्मराज
C)
राष्ट्रमत
D)
उपरोक्त सभी
उत्तर: D) उपरोक्त सभी

 

श्री देव सुमन ने किस पत्रिका का सह-संपादन किया था?
A)
कर्मभूमि
B)
हिमालय
C)
गढ़ सेवा संघ
D)
हिमालय सेवा संघ
उत्तर: A) कर्मभूमि

 

श्री देव सुमन ने किस पुस्तक का प्रकाशन किया था?
A)
हिमाचल
B)
हिमालय
C)
गढ़वाली संस्कृति
D)
उत्तराखंड की लोक कथाएँ
उत्तर: B) हिमालय

 

श्री देव सुमन ने किस संगठन की स्थापना की थी?
A)
गढ़ सेवा संघ
B)
हिमालय सेवा संघ
C)
उत्तराखंड सेवा संघ
D)
प्रजामंडल
उत्तर: B) हिमालय सेवा संघ

 

श्री देव सुमन ने किस आंदोलन में भाग लिया था?
A)
नमक सत्याग्रह
B)
भारत छोड़ो आंदोलन
C)
असहमति आंदोलन
D)
उपरोक्त सभी
उत्तर: D) उपरोक्त सभी

 

श्री देव सुमन ने किस वर्ष 'भारत छोड़ो आंदोलन' में भाग लिया था?
A) 1930
B) 1932
C) 1942
D) 1944
उत्तर: C) 1942

 

श्री देव सुमन को किस वर्ष गिरफ्तार किया गया था?
A) 1930
B) 1932
C) 1942
D) 1944
उत्तर: C) 1942

 

श्री देव सुमन को किस वर्ष टिहरी रियासत से निष्कासित किया गया था?
A) 1930
B) 1932
C) 1942
D) 1944
उत्तर: C) 1942

 

श्री देव सुमन ने किस वर्ष टिहरी जेल में आमरण अनशन शुरू किया था?
A) 1942
B) 1943
C) 1944
D) 1945
उत्तर: C) 1944

 

श्री देव सुमन ने कितने दिन तक आमरण अनशन किया था?
A) 60
दिन
B) 70
दिन
C) 84
दिन
D) 90
दिन
उत्तर: C) 84 दिन

 

श्री देव सुमन का निधन कब हुआ था?
A) 25
मई 1944
B) 25
जुलाई 1944
C) 25
अगस्त 1944
D) 25
दिसंबर 1944
उत्तर: B) 25 जुलाई 1944

 

श्री देव सुमन की पुण्यतिथि कब मनाई जाती है?
A) 25
मई
B) 25
जुलाई
C) 25
अगस्त
D) 25
दिसंबर
उत्तर: B) 25 जुलाई

 

श्री देव सुमन का अंतिम संस्कार कहाँ किया गया था?
A)
जौल गाँव
B)
टिहरी जेल के पास
C)
देहरादून
D)
पौड़ी
उत्तर: B) टिहरी जेल के पास

 

श्री देव सुमन के बलिदान के बाद टिहरी रियासत में क्या परिवर्तन हुआ था?
A)
प्रजामंडल को वैधानिक किया गया
B)
टिहरी रियासत का विलय हुआ
C)
जनता में जागरूकता बढ़ी
D)
उपरोक्त सभी
उत्तर: D) उपरोक्त सभी

 

श्री देव सुमन ने किस वर्ष टिहरी राज्य प्रजा मंडल की स्थापना की थी?
A) 1937
B) 1938
C) 1939
D) 1940
उत्तर: C) 1939

 

श्री देव सुमन ने किस वर्ष टिहरी रियासत के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था?
A) 1930
B) 1932
C) 1939
D) 1942
उत्तर: C) 1939

 

श्री देव सुमन ने किस वर्ष टिहरी रियासत के जनरल मिनिस्टर को पत्र लिखा था?
A) 1942
B) 1943
C) 1944
D) 1945
उत्तर: B) 1943

 

श्री देव सुमन ने किस वर्ष टिहरी जेल में आमरण अनशन शुरू किया था?
A) 1942
B) 1943
C) 1944
D) 1945
उत्तर: C) 1944

 

श्री देव सुमन ने किस वर्ष टिहरी रियासत के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था?
A) 1930
B) 1932
C) 1939
D) 1942
उत्तर: C) 1939

 

श्री देव सुमन का साहित्यिक नाम क्या था?
A)
सुमन सौरभ
B)
देव सुमन
C)
श्री सुमन
D)
उपरोक्त सभी
उत्तर: A) सुमन सौरभ

 

 

श्री देव सुमन की पत्नी का नाम क्या था?
A)
विमला देवी
B)
गीता देवी
C)
राधा देवी
D)
सरला देवी
उत्तर: A) विमला देवी

 

श्री देव सुमन ने किस क्षेत्र में विशेष योगदान दिया था?
A)
साहित्य
B)
स्वतंत्रता संग्राम
C)
शिक्षा
D)
उपरोक्त सभी
उत्तर: D) उपरोक्त सभी

 

श्री देव सुमन का तात्कालिक समाज में क्या स्थान था?
A)
शिक्षक
B)
कवि और लेखक
C)
समाज सुधारक
D)
उपरोक्त सभी
उत्तर: D) उपरोक्त सभी

 

श्री देव सुमन की मृत्यु के बाद उनके योगदान को याद करने के लिए टिहरी में क्या स्थापित किया गया?
A)
संग्रहालय
B)
स्मारक स्थल
C)
पुस्तकालय
D)
विश्वविद्यालय
उत्तर: B) स्मारक स्थल

 

श्री देव सुमन के संघर्ष का मुख्य उद्देश्य क्या था?
A)
टिहरी में लोकतंत्र लाना
B)
शिक्षा का प्रचार
C)
किसानों के हित की रक्षा
D)
बालकों के लिए विद्यालय बनाना
उत्तर: A) टिहरी में लोकतंत्र लाना

 

श्री देव सुमन को 'टिहरी का अमर शहीद' क्यों कहा जाता है?
A)
उन्होंने ब्रिटिश शासन का विरोध किया
B)
उन्होंने टिहरी रियासत के अत्याचार के खिलाफ आंदोलन किया
C)
उन्होंने अपने जीवन का बलिदान दिया
D)
उपरोक्त सभी
उत्तर: D) उपरोक्त सभी

 

श्री देव सुमन ने किस जेल में आमरण अनशन किया था?
A)
देहरादून जेल
B)
टिहरी जेल
C)
हरिद्वार जेल
D)
नैनीताल जेल
उत्तर: B) टिहरी जेल

 

श्री देव सुमन का प्रमुख आंदोलन किसके खिलाफ था?
A)
ब्रिटिश सरकार
B)
टिहरी रियासत का राजा
C)
स्थानीय जमींदार
D)
अंग्रेजों और राजा दोनों
उत्तर: D) अंग्रेजों और राजा दोनों

 

श्री देव सुमन की प्रमुख रचनाओं में से एक कौन सी है?
A)
सुमन सौरभ
B)
गढ़वाली गीत
C)
हिमालयी कहानियाँ
D)
प्रजामंडल इतिहास
उत्तर: A) सुमन सौरभ

 

श्री देव सुमन के साहित्य में मुख्य विषय क्या था?
A)
स्वतंत्रता और समाज सुधार
B)
प्राकृतिक सौंदर्य
C)
धार्मिक कथाएँ
D)
विज्ञान और तकनीक
उत्तर: A) स्वतंत्रता और समाज सुधार

 

श्री देव सुमन ने किस आंदोलन के दौरान अपने जीवन का बलिदान दिया?
A)
भारत छोड़ो आंदोलन
B)
टिहरी प्रजामंडल आंदोलन
C)
नमक सत्याग्रह
D)
गढ़वाली विद्रोह
उत्तर: B) टिहरी प्रजामंडल आंदोलन

 

श्री देव सुमन के बलिदान से क्या संदेश मिलता है?
A)
स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना
B)
न्याय और लोकतंत्र के लिए लड़ना
C)
समाज में जागरूकता लाना
D)
उपरोक्त सभी
उत्तर: D) उपरोक्त सभी

 

श्री देव सुमन का संबंध किस आंदोलन से था?
A)
राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन
B)
स्थानीय जन अधिकार आंदोलन
C)
किसान आंदोलन
D)
श्रमिक आंदोलन
उत्तर: B) स्थानीय जन अधिकार आंदोलन

 

श्री देव सुमन का सबसे बड़ा लक्ष्य क्या था?
A)
शिक्षा का प्रसार
B)
टिहरी रियासत में प्रजा का अधिकार
C)
साहित्य रचना
D)
खेल और संस्कृति
उत्तर: B) टिहरी रियासत में प्रजा का अधिकार

 

श्री देव सुमन ने किस माध्यम से लोगों को जागरूक किया?
A)
लेख और पत्रिकाएँ
B)
सार्वजनिक भाषण
C)
आंदोलन और प्रदर्शन
D)
उपरोक्त सभी
उत्तर: D) उपरोक्त सभी

 

श्री देव सुमन के योगदान के लिए आज के दिन कौन सा स्मारक स्थल प्रसिद्ध है?
A)
देव सुमन स्मारक, टिहरी
B)
गढ़वाल संग्रहालय
C)
हिमालय पुस्तकालय
D)
टिहरी विश्वविद्यालय
उत्तर: A) देव सुमन स्मारक, टिहरी

 

श्री देव सुमन ने शिक्षा के क्षेत्र में किस प्रकार का योगदान दिया?
A)
स्कूलों की स्थापना
B)
छात्रों को स्वतंत्र विचार देना
C)
साहित्य के माध्यम से जागरूकता
D)
उपरोक्त सभी
उत्तर: D) उपरोक्त सभी

 

श्री देव सुमन के जीवन से कौन सा मुख्य मूल्य सीखा जा सकता है?
A)
साहस और बलिदान
B)
शिक्षा और जागरूकता
C)
न्याय और समानता
D)
उपरोक्त सभी
उत्तर: D) उपरोक्त सभी

 

 

 

 

 


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