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उत्तराखण्ड राज्य के लोकनृत्य/Folk Dance of Uttarakhand State

उत्तराखण्ड राज्य के लोकनृत्य

  • लोकनृत्य को लोककलाओं में प्राचीनतम माना गया है। भगवान शिव को नृत्य का देवता कहा जाता है भगवान शिव का तांडव नृत्य रौद्र रूप में होता है
  • पार्वती का लास्य नृत्य कोमल रूप में अभिव्यक्त होता है • थड़िया नृत्य गढवाल में बंसत पंचमी के समय विवाहित लड़कियां पहली बार मायके आने पर करती है
  • थड़िया नृत्य लास्य शैली का नृत्य गीत है हारूल नृत्य जौनसारियों द्वारा रमतुला वाद्ययंत्र के साथ किया। जाता है जो महाभारत की कथाओं पर आधारित है
  • बुड़ियात नृत्य जौनसार में शुभ अवसरों पर किया जाता है
  • लंगविर नृत्य पुरूषों द्वारा खम्भे पर चढ़कर किया जाता है, इस नट नृत्य भी कहा जाता है
  • तांदी नृत्य उत्तरकाशी व टिहरी में किया जाता है झुमैलो नृत्य जम्मालिक श्रेणी का नृत्य है, जिसे नवविवाहित कन्याओं द्वारा किया जाता है
  • चांचरी नृत्य गढवाल क्षेत्र में स्त्री व पुरूषों द्वारा किया जाता है चांचरी नृत्य बसंत ऋतु की चाँदनी रात में किया जाता है 
  • कुमाऊँ क्षेत्र में चांचरी नृत्य को झोड़ा कहा जाता है झोड़ा नृत्य
  • कुमाऊँ में होली के बाद बड़ी उमंग के साथ किया जाता है
  • बैर नृत्य कुमाऊँ क्षेत्र में गाया जाने वाला प्रतियोगात्मक गीत है 
  • भगनौल नृत्य कुमाऊँ क्षेत्र में मेलों के अवसर पर नृत्य किया जाता है, इसमें हुड़का प्रमुख वाद्ययंत्र है
  • पांडव नृत्य यह मंडाण में किया जाने वाला नृत्य है, जो पांच पाण्डव से सम्बन्धित है
  • रणभूत नृत्य वीर भड़ो की याद में किया जाने वाला नृत्य है
  • बाजूबंद नृत्य रवांई क्षेत्र में किया जाने वाला स्त्री व पुरूषों के बीच संवाद नृत्य है, गढ़वाल में बांजूबंद नृत्य को दूड़ा नृत्य कहते है 
  • सिपैया नृत्य देश प्रेम की भावना से ओत-प्रेत होता है
  • गूजर नृत्य में प्रमुख नृत्य बणजारा व नाटी नृत्य है • गूजरों के नृत्य गीत चार शैली के है, व वाद्ययंत्रों में प्रमुख डफली व खजरी है
  • धार्मिक नृत्य नागराज नृत्य में डौंर-थाली का उपयोग होता है, गढ़वाल व कुमाऊँ में श्री कृष्ण के रूप में नागराजा की पूजा होती है
  • निरकार नृत्य में भगवान शिव के रूप में पूजा होती है, इसमें पैयाँ वृक्ष की पूजा की जाती है
  • नरसिंह नृत्य में गुरु गोरखनाथ के शिष्य की पूजा होती है, जिसमें पश्वा औतरू रूप में आ जाते है महाकाली देवी का नृत्य तांडव शैली का है

चौंफला नृत्य

  • चौंफला नृत्य गढ़वाल में किए जाने वाला शृंगार भाव प्रधान है 
  • चौंफला नृत्य में पुरूष नृतकों को चौफुला व स्त्री नृतकों को चौंफलों कहा जाता है
  • चौंफला नृत्य असम के बिहु व गुजरात के गरबा नृत्य के समान है
  • मणिपुर का रौस नृत्य भी इसी शैली का है।
  • मान्यता है कि देवी पार्वती ने शिव को प्रसन्न करने के लिए। चौंफला नृत्य किया था इस नृत्य में हाथों की ताली व पैरों की थाप ध्वनि मनमोहक लगती है

मण्डाण नृत्य

  • मण्डाण नृत्य टिहरी व उत्तरकाशी में किया जाता है मण्डाण नृत्य को केदार नृत्य भी कहा जाता है मण्डाण नृत्य की मुख्य विशेषता एकाग्रता है
  • मण्डाण नृत्य को चार-तालों में किया जाता है
  • युद्ध नृत्य शैली सरौं नृत्य गढवाल में किए जाने वाला युद्ध गीत नृत्य है, जो शादी-विवाह के अवसर पर किया जाता है
  • सरौं नृत्य में नृतक तलवार की ढाल पर स्वांग करता है में  सरौं नृत्य टिहरी व उतरकाशी में प्रसिद्ध है
  • भोटिया लोगों का पौणा नृत्य भी युद्ध नृत्य शैली का है, जो शादी विवाह के अवसर पर किया जाता है 
  • कुमाऊँ में छोलिया नृत्य युद्ध नृत्य की शैली का है
  • छोलिया नृत्य शादी या धार्मिक अवसरो और किरजी कुंभ के समय किया जाता है इसमें तलवार व ढाल का प्रयोग किया जाता है, यह नृत्य पांडव व नरसिंह लीलाओं पर आधारित है



उत्तराखंड के लोक नृत्य: संस्कृति की थिरकती पहचान

उत्तराखंड, जिसे "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, न केवल अपने धार्मिक स्थलों, पहाड़ी सौंदर्य और पवित्र नदियों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी लोक संस्कृति भी अत्यंत समृद्ध है। यहां के लोक नृत्य (Folk Dances) न केवल मनोरंजन का माध्यम हैं, बल्कि सामाजिक, धार्मिक, पारंपरिक और सांस्कृतिक भावनाओं की अभिव्यक्ति भी हैं। यह लोकनृत्य पीढ़ियों से उत्तराखंड की विविधता, प्रकृति और परंपरा को जीवंत बनाए हुए हैं।


1. उत्तराखंड के लोक नृत्य का महत्व

लोकनृत्य केवल नाच-गाने की परंपरा नहीं हैं, बल्कि यह:

  • सामाजिक एकता को मजबूत करते हैं

  • धार्मिक अनुष्ठानों का हिस्सा होते हैं

  • प्रकृति, ऋतुओं और जीवनचक्र से जुड़े होते हैं

  • किसानों, पशुपालकों, महिलाओं और युवाओं के भावों को दर्शाते हैं


2. उत्तराखंड के प्रमुख लोक नृत्य

2.1. झोड़ा (Jhora)

  • क्षेत्र: कुमाऊं क्षेत्र

  • विशेषता: यह गोल घेरा बनाकर सामूहिक रूप से किया जाने वाला नृत्य है। इसमें स्त्री-पुरुष दोनों भाग लेते हैं।

  • अवसर: त्योहारों, विवाह, मेलों, धार्मिक अनुष्ठानों पर

  • संगीत: ढोल, दमाऊं, मुरली की ताल पर

2.2. छपेली (Chhapeli)

  • क्षेत्र: कुमाऊं

  • विशेषता: युगल नृत्य, जिसमें पुरुष और महिला कलाकार प्रेम, सौंदर्य और हास्य का प्रदर्शन करते हैं।

  • संगीत: चांचरी गीत, स्वर और ढोल की थाप

2.3. थड्या (Thadya)

  • क्षेत्र: गढ़वाल

  • विशेषता: पारंपरिक उत्सवों, धार्मिक अनुष्ठानों, विवाह आदि पर किया जाने वाला नृत्य

  • संगीत: लोकगीतों की धुन पर पुरुषों द्वारा किया जाता है

2.4. जागर नृत्य (Jagar Dance)

  • प्रकार: धार्मिक-आध्यात्मिक नृत्य

  • विशेषता: देवी-देवताओं या पूर्वजों को जागृत करने के लिए किया जाता है

  • ध्वनि: ढोल, थाली, हुरुका, दमाऊं के साथ जागर गायन

2.5. पांडव नृत्य (Pandav Nritya)

  • विषय: महाभारत की कथा पर आधारित

  • अवधि: कई रातों तक चलने वाला

  • प्रदर्शन: संवाद, नाट्य और नृत्य के सम्मिलन से किया जाता है

2.6. लंगविर नृत्य (Langvir Nritya)

  • क्षेत्र: गढ़वाल

  • विशेषता: यह एक्रोबैटिक नृत्य है, जिसमें पुरुष बाँस के सहारे करतब करते हैं

  • विशेष अवसर: मेलों, उत्सवों में

  • मान्यता: साहस और शक्ति का प्रतीक

2.7. रामलीला नृत्य (Ramleela Nritya)

  • विषय: रामायण की कथाओं पर आधारित

  • प्रदर्शन: गीत, संवाद, अभिनय और नृत्य के माध्यम से रामकथा प्रस्तुत

2.8. हुरका बाउल (Hurka Baul)

  • क्षेत्र: कुमाऊं के किसानों द्वारा

  • विषय: खेती-किसानी, श्रम और गांव की कहानियों को दर्शाने वाला

  • संगीत: हुरका नामक वाद्ययंत्र के साथ

2.9. चौंसिंग्या नृत्य (Chhounsingya Nritya)

  • विशेषता: इसमें चार वादक ढोल-दमाऊं बजाते हुए नृत्य करते हैं

  • सामाजिक उद्देश्य: त्योहारों पर खुशियां मनाने का माध्यम


3. उत्तराखंड में लोक नृत्य का धार्मिक महत्व

  • जागर और पांडव नृत्य विशेष रूप से धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग किए जाते हैं

  • नंदा देवी राजजात जैसे बड़े धार्मिक आयोजनों में पारंपरिक नृत्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं


4. वेशभूषा और लोक वाद्य

  • वेशभूषा: पुरुषों के लिए पहाड़ी टोपी, चूड़ीदार पायजामा, अचकन; महिलाओं के लिए घाघरा, चोली, ओढ़नी, गहने

  • वाद्य यंत्र: ढोल, दमाऊं, रणसिंघा, भैंसपत्ती, हुरका, मुरली, मशकबीन


5. उत्तराखंड के लोकनृत्य और पर्यटन

  • उत्तराखंड टूरिज्म विभाग विभिन्न मेलों में इन लोकनृत्यों का प्रदर्शन कराता है

  • उत्तरायणी मेला, नंदा देवी मेला, जौलजिबी मेला, और बागेश्वर मेला में लोकनृत्य आकर्षण का केंद्र होते हैं


6. आधुनिक दौर में लोक नृत्य

  • टेलीविजन, सोशल मीडिया और मंचों के माध्यम से लोकनृत्य पुनर्जीवित हो रहे हैं

  • संस्थाएं जैसे उत्तराखंड संगीत नाट्य अकादमी लोकनृत्यों को संरक्षित कर रही हैं

  • विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में लोकनृत्य प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं


7. उत्तराखंड के लोकनृत्य और नई पीढ़ी

  • अब नई पीढ़ी इन नृत्यों को फ्यूजन म्यूजिक और डिजिटल मीडिया के ज़रिए वैश्विक मंचों पर ले जा रही है

  • गैरसैंण, पौड़ी, चमोली, और अल्मोड़ा में युवा कलाकार इन परंपराओं को संरक्षित करने में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं



उत्तराखंड के लोक नृत्य, राज्य की सांस्कृतिक आत्मा हैं। वे केवल मनोरंजन नहीं हैं, बल्कि यह नृत्य एक जीवित परंपरा, सामाजिक एकता, धार्मिक श्रद्धा, और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक हैं। इनका संरक्षण और प्रचार आज के दौर की सबसे बड़ी आवश्यकता है, ताकि हमारी भावी पीढ़ी भी अपनी जड़ों से जुड़ी रह सके।


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