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बूढाकेदार नाथ|Budakedar Nath

बूढाकेदार नाथ|Budakedar Nath


बूढ़ाकेदारनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक हिंदू मंदिर है। यह भारत के उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। मंदिर केदारनाथ मंदिर से 30 किलोमीटर दूर केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य में स्थित है।

इस शिवलिँग के बारे मेँ स्कन्द पुराण, केदारखण्ड मेँ वर्णन है कि, जब पाण्डव स्वर्गारोहण हेतु हिमालय मेँ आये तो भगवान शंकर के दर्शन बूढे ब्राह्मण के रूप में बालगंगा, धर्मगंगा के संगम पर यहीँ हुए और दर्शन देकर भगवान शंकर शिला के रूप मेँ अन्तर्धान हो गये। तत्पश्चात भैँसे के रूप मेँ केदार की ओर गये । वृद्ध के रूप मेँ दर्शन देने पर शिव वृद्धकेदारेश्वरकहलाए जो वर्तमान समय मेँ बूढाकेदार नाम से लोक प्रसिद्ध है ।जिसके बारे मेँ स्कन्दपुराण मेँ उल्लेख है कि--महापापो पपायेश्चः गोत्र हत्यादिभिस्तथाः,तत् लिगं स्पर्शनादेवः मुच्यते तत्क्षणादिह ।यह शिवलिँग भगवान बूढाकेदार के मन्दिर मेँ स्थित है, जिसके दर्शन हेतु श्रद्धालु वर्षभर यहाँ आते हैँ।

बूढाकेदार नाथ मूर्ति 

बूढ़ाकेदारनाथ मंदिर पांच केदारों में से एक है, जो भगवान शिव के पांच पवित्र मंदिरों का समूह है। अन्य चार केदार केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और मद्महेश्वर हैं।

बूढ़ाकेदारनाथ मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा किया गया था। मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली में किया गया है। मंदिर में भगवान शिव की काले संगमरमर की मूर्ति स्थापित है।

बूढाकेदार नाथ|Budakedar Nath

बूढ़ाकेदारनाथ मंदिर एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। हर साल लाखों तीर्थयात्री मंदिर में दर्शन करने आते हैं। मंदिर केदारनाथ यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है।

बूढ़ाकेदारनाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए, आपको पहले ऋषिकेश या देहरादून जाना होगा। ऋषिकेश और देहरादून से, आप गौरीकुंड के लिए बस या टैक्सी ले सकते हैं। गौरीकुंड से, आपको मंदिर तक 16 किलोमीटर की ट्रेक करनी होगी।

बूढ़ाकेदारनाथ मंदिर की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय अप्रैल से जून और सितंबर से नवंबर के बीच है। इस समय मौसम सुखद होता है और पर्यटन के लिए अनुकूल होता है।

बूढाकेदार नाथ|Budakedar Nath

बूढ़ाकेदारनाथ मंदिर के बारे में कुछ रोचक तथ्य:

  • मंदिर 3,300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
  • मंदिर केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य में स्थित है।
  • मंदिर पांच केदारों में से एक है।
  • मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा किया गया था।
baba ji

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