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माधो सिंह भंडारी: जीवन परिचय और उनकी कहानी|Madho Singh Bhandari: Biography and his story

 

माधो सिंह भंडारी: जीवन परिचय और उनकी कहानी

 कौन थे माधो सिंह भंडारी?

माधो सिंह भंडारी, जिन्हें 'माधो सिंह मलेथा' के नाम से भी जाना जाता है, 17वीं सदी के गढ़वाल (वर्तमान उत्तराखंड) के एक महान योद्धा, सेनापति और कुशल इंजीनियर थे। उनका जन्म लगभग 1595 ई. में उत्तराखंड के टिहरी जिले के मलेथा गांव में एक प्रतिष्ठित भंडारी परिवार में हुआ था। उनके पिता, सौणबाण कालो भंडारी, भी अपनी वीरता और बुद्धिमता के लिए प्रसिद्ध थे, जिन्हें गढ़वाल नरेश ने जागीर प्रदान की थी। माधो सिंह ने अपने पिता की वीरता और स्वाभिमान को विरासत में लिया और गढ़वाल के इतिहास में एक अमर नाम बन गए।

  उनकी प्रसिद्धि का कारण

माधो सिंह भंडारी उत्तराखंड में अपनी वीरता, युद्ध कौशल, और सामाजिक कार्यों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी प्रसिद्धि के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

1. सैन्य पराक्रम: माधो सिंह गढ़वाल के राजा महीपति शाह (1631-1635) के सेनापति थे। उन्होंने तिब्बती और गोरखा आक्रमणकारियों को कई बार परास्त किया, खासकर दावा क्षेत्र और छोटा चीनी में हुए युद्धों में। उनकी वीरता ऐसी थी कि तिब्बती सैनिक उनके नाम से भी डरते थे।

2. मलेथा की गूल (सुरंग): माधो सिंह ने अपने गांव मलेथा में चंद्रभागा नदी से पानी लाने के लिए पहाड़ को काटकर 225 फीट लंबी सुरंग बनाई। यह इंजीनियरिंग का एक अद्भुत नमूना था, जो 400 साल पहले बिना आधुनिक उपकरणों के बनाया गया। इस सुरंग ने मलेथा के सूखे खेतों को उपजाऊ बना दिया, जिसके कारण गांव समृद्ध हुआ।

3. बलिदान: किवदंती के अनुसार, सुरंग में पानी लाने के लिए माधो सिंह ने अपने इकलौते पुत्र गजेसिंह की बलि दी। यह बलिदान उनकी सामाजिक जिम्मेदारी और समर्पण को दर्शाता है, जिसने उन्हें लोककथाओं में अमर कर दिया।

4. लोककथाओं और संस्कृति में स्थान: उत्तराखंड की लोककथाओं और पंवाड़ों (लोकगीतों) में माधो सिंह को एक महान भड़ (योद्धा) के रूप में गाया जाता है। प्रसिद्ध छंद, *"एक सिंह रैंदो बण, एक सिंह गाय का। एक सिंह माधो सिंह, और सिंह काहे का।"* उनकी वीरता को दर्शाता है।


उनकी कहानी

माधो सिंह भंडारी की कहानी वीरता, त्याग और सामाजिक सेवा का प्रतीक है। वह कम उम्र में ही श्रीनगर (गढ़वाल) के शाही दरबार की सेना में शामिल हो गए और अपनी वीरता के बल पर सेनाध्यक्ष बने। उन्होंने राजा महीपति शाह के साथ मिलकर गढ़वाल की उत्तरी सीमाओं को तिब्बती हमलों से सुरक्षित किया और दावा क्षेत्र में सीमा निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मलेथा की गूल की कहानी: एक बार छुट्टियों में मलेथा लौटने पर माधो सिंह को अपनी पत्नी उदीना से पता चला कि गांव में पानी की कमी के कारण खेत सूखे हैं और अच्छा भोजन उपलब्ध नहीं है। यह बात उन्हें चुभ गई। उन्होंने चंद्रभागा नदी का पानी गांव तक लाने का संकल्प लिया, जो पहाड़ों के बीच होने के कारण असंभव लगता था। माधो सिंह ने गांव वालों और विशेषज्ञों की मदद से पहाड़ में सुरंग खोदने का काम शुरू किया। पांच साल की कठिन मेहनत और छेनी, हथौड़े जैसे साधारण उपकरणों से उन्होंने यह असंभव कार्य पूरा किया।

कहा जाता है कि सुरंग बनने के बाद भी पानी नहीं बह रहा था। एक किवदंती के अनुसार, उनकी कुलदेवी ने सपने में बताया कि उनके पुत्र गजेसिंह की बलि से ही पानी बहेगा। माधो सिंह ने गांव की भलाई के लिए अपने पुत्र की बलि दे दी, जिसके बाद पानी बहने लगा। इसके बाद वे कभी मलेथा नहीं लौटे और श्रीनगर लौट गए।

 मृत्यु: माधो सिंह की मृत्यु तिब्बत के छोटा चीनी क्षेत्र में एक भीषण युद्ध के दौरान हुई। कुछ स्रोतों के अनुसार, वे रोगग्रस्त हो गए थे, और कुछ के अनुसार युद्ध में शहीद हुए। उनकी मृत्यु ने उन्हें गढ़वाल की लोककथाओं में और भी अमर कर दिया।

 उत्तराखंड में उनकी छवि

उत्तराखंड में माधो सिंह भंडारी को एक आदर्श योद्धा, समाजसेवी और तकनीकी कौशल के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। उनकी वीरता और बलिदान की कहानियां लोककथाओं, पंवाड़ों और मेलों में जीवित हैं। मलेथा में हर साल आयोजित होने वाला माधो सिंह भंडारी मेला उनकी स्मृति में सांस्कृतिक कार्यक्रमों और नृत्य-नाटिकाओं के साथ मनाया जाता है।

- लोक पर्व इगास: उत्तराखंड का प्रसिद्ध पर्व इगास (मंगसीर बग्वाल) माधो सिंह की तिब्बती युद्ध में विजय और उनके गांव लौटने की खुशी में मनाया जाता है।

- शैक्षिक सम्मान: उनकी स्मृति में उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय का नाम 2018 में "वीर माधो सिंह भंडारी उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय" रखा गया।

- स्मारक और गूल का महत्व: मलेथा में उनकी बनाई गूल आज भी खेतों को सींचती है, हालांकि यह अब जर्जर हो चुकी है। सरकार ने इसके जीर्णोद्धार और स्मारक के सौंदर्यीकरण की घोषणा की है।

  संपूर्ण जानकारी

- जन्म और परिवार: माधो सिंह का जन्म मलेथा गांव में हुआ, जो श्रीनगर और देवप्रयाग के बीच स्थित है। उनके पिता कालो भंडारी को गढ़वाल नरेश मानसिंह ने 'सौणबाण' (स्वर्णिम विजेता) की उपाधि दी थी। उनकी पत्नी उदीना कुमाऊं की राजकुमारी थीं, जिन्हें उन्होंने बाहुबल से विवाह किया।

- सैन्य उपलब्धियां: उन्होंने गढ़वाल की सीमाओं को सतलज नदी तक विस्तारित किया और तिब्बत के दापा मंडी तक विजय प्राप्त की।

- सामाजिक योगदान: गूल निर्माण के अलावा, उनकी वीरता और कूटनीति ने गढ़वाल को सुरक्षित और समृद्ध बनाया।

- सांस्कृतिक प्रभाव: उनकी कहानियां नृत्य-नाटिकाओं और लोकगीतों में जीवित हैं। मलेथा में उनके स्मारक का निर्माण और मेले का आयोजन उनकी स्मृति को बनाए रखता है।

 निष्कर्ष

माधो सिंह भंडारी उत्तराखंड के इतिहास और संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा हैं। उनकी वीरता, तकनीकी कौशल और बलिदान की कहानियां आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं। मलेथा की गूल और उनकी सैन्य उपलब्धियां उन्हें एक किंवदंती बनाती हैं, और उत्तराखंड उन्हें एक महान योद्धा, समाजसेवी और इंजीनियर के रूप में सम्मान देता है।


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