पांडवों का उत्तराखंड से क्या संबंध था ?| What was the connection of Pandavas with Uttarakhand?
पांडवों का उत्तराखंड से गहरा संबंध महाभारत काल से जुड़ा है, क्योंकि उत्तराखंड (प्राचीन काल में केदारखंड और मानसखंड) को उनकी तपोभूमि, अज्ञातवास स्थली, और स्वर्गारोहण यात्रा का महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। नीचे पांडवों के उत्तराखंड से संबंध, उनके वहां आने का समय, स्रोत, और इससे जुड़ी कहानियों का विस्तृत विवरण दिया गया है:
1. पवित्र तीर्थों से संबंध: उत्तराखंड के पंचकेदार (केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर, कल्पेश्वर) और बद्रीनाथ जैसे तीर्थ पांडवों से जुड़े हैं। मान्यता है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने अपने कौरव भाइयों की हत्या (गोत्र हत्या) के पाप से मुक्ति के लिए भगवान शिव की शरण ली थी।
2. अज्ञातवास का स्थान: पांडवों ने अपने 13वें वर्ष के अज्ञातवास का समय आंशिक रूप से उत्तराखंड के क्षेत्रों में बिताया, विशेष रूप से मत्स्य जनपद की राजधानी विराटनगर (आधुनिक बैराट, राजस्थान के निकट, लेकिन कुछ विद्वान इसे उत्तराखंड से भी जोड़ते हैं) में।
3. स्वर्गारोहण यात्रा: महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में स्वर्ग की यात्रा की,
जो उनकी अंतिम यात्रा थी। यह यात्रा बद्रीनाथ, केदारनाथ, और माणा गांव जैसे स्थानों से होकर गुजरी।
4. सांस्कृतिक प्रभाव: उत्तराखंड में पांडव नृत्य और पांडव लीला जैसे लोक परंपराएं पांडवों की स्मृति को जीवित रखती हैं। ये आयोजन गढ़वाल क्षेत्र में नवंबर से फरवरी तक होते हैं, जिसमें पांडवों और द्रौपदी की पूजा की जाती है।
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पांडवों का उत्तराखंड से क्या संबंध था ?| What was the connection of Pandavas with Uttarakhand? |
पांडव कब-कब उत्तराखंड आए
1. वनवास के दौरान (महाभारत के वनपर्व):
- पांडव अपने 12
वर्षीय वनवास के दौरान उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में आए। महाभारत के वनपर्व में उल्लेख है कि पांडव लोमष ऋषि के साथ गंगाद्वार (हरिद्वार) से भृंगतुंग (केदारनाथ) तक के क्षेत्र में भ्रमण करते थे।
- समय: यह द्वापर युग में, महाभारत युद्ध से पहले, पांडवों के वनवास के दौरान (लगभग 3102 ईसा पूर्व, पारंपरिक कालानुक्रम के अनुसार) हुआ।
- स्थान: हरिद्वार, केदारनाथ, और अन्य हिमालयी क्षेत्र।
2. अज्ञातवास के दौरान:
- पांडवों ने अपने अज्ञातवास का एक हिस्सा मत्स्य जनपद में बिताया। कुछ स्थानीय कथाओं के अनुसार, उत्तराखंड के पांडवखोली (अल्मोड़ा के पास) जैसे स्थान उनके अज्ञातवास से जुड़े हैं।
- समय: वनवास के बाद 13वें वर्ष में।
- स्थान: पांडवखोली (अल्मोड़ा), और संभवतः अन्य गढ़वाल-कुमाऊं क्षेत्र।
3. महाभारत युद्ध के बाद (स्वर्गारोहण):
- युद्ध के बाद पांडवों ने अपने पापों के प्रायश्चित के लिए भगवान शिव की खोज में उत्तराखंड की केदारघाटी का दौरा किया। इसके बाद,
उन्होंने स्वर्ग की यात्रा शुरू की,
जो हिमालय के बद्रीनाथ, केदारनाथ, और माणा गांव से होकर गुजरी।
- समय: महाभारत युद्ध के बाद, जब पांडवों ने अपना राजपाट परीक्षित को सौंप दिया।
- स्थान: केदारनाथ, बद्रीनाथ, माणा गांव, सरस्वती नदी का उद्गम।
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पांडवों का उत्तराखंड से क्या संबंध था ?| What was the connection of Pandavas with Uttarakhand? |
विवरण के स्रोत
पांडवों के उत्तराखंड से संबंध के विवरण निम्नलिखित स्रोतों में मिलते हैं:
1. महाभारत:
- वनपर्व: पांडवों के उत्तराखंड भ्रमण का उल्लेख।
- स्वर्गारोहण पर्व: पांडवों की स्वर्ग यात्रा और हिमालय के क्षेत्रों का वर्णन।
2. स्थानीय लोककथाएं और परंपराएं:
- उत्तराखंड की पांडव लीला और पांडव नृत्य में पांडवों की कहानियां संरक्षित हैं।
- पंचकेदार और बद्रीनाथ की स्थानीय किंवदंतियां।
3. पुरातात्विक और ऐतिहासिक स्रोत:
- उत्तराखंड के कुछ स्थानों जैसे पांडवखोली और माणा गांव में पांडवों से जुड़े अवशेष और कथाएं प्रचलित हैं।
- पुरातात्विक खोजें, जैसे लाखु-उड़्यार (1968 में सुयाल नदी के तट पर) में मानव और पशुओं के चित्र, प्राचीन संस्कृति से संबंधित हैं, जो पांडव काल से अप्रत्यक्ष रूप से जोड़े जा सकते हैं।
4. आधुनिक साहित्य और वेब स्रोत:
- विभिन्न वेबसाइट्स जैसे bharatdiscovery.org, webdunia.com, और उत्तराखंड पर्यटन के आधिकारिक पेज पांडवों के उत्तराखंड संबंध को दर्शाते हैं।
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बद्रीनाथ में स्थित भीम पुल |
संबंधित कहानियां
1. पंचकेदार की कथा:
- महाभारत युद्ध के बाद पांडवों पर गोत्र हत्या का पाप लगा। वे भगवान शिव से क्षमा मांगने के लिए उत्तराखंड आए, लेकिन शिव उनसे मिलना नहीं चाहते थे। शिव बैल का रूप धरकर केदारघाटी में छिप गए। पांडवों ने उनका पीछा किया, और अंततः शिव ने अपने शरीर के विभिन्न हिस्सों को पंचकेदार (केदारनाथ में कूबड़, तुंगनाथ में भुजाएं, आदि) में प्रकट किया। पांडवों ने इन स्थानों पर शिव की पूजा कर पापमुक्ति प्राप्त की।
2. भीम पुल की कहानी:
- स्वर्गारोहण यात्रा के दौरान, जब पांडव माणा गांव के पास सरस्वती नदी के उद्गम पर पहुंचे, तो द्रौपदी के लिए नदी पार करना कठिन था। भीम ने एक विशाल चट्टान उठाकर नदी पर रख दी, जिसे आज भीम पुल कहा जाता है। यह चट्टान आज भी माणा गांव में देखी जा सकती है।
3. द्रौपदी और भीम की कथा:
- स्वर्ग यात्रा के दौरान द्रौपदी थककर गिरने लगीं। भीम ने उन्हें सहारा दिया। द्रौपदी ने कहा कि सभी भाइयों में भीम ने उन्हें सबसे अधिक प्यार दिया, और वे अगले जन्म में फिर से भीम की पत्नी बनना चाहेंगी।
4. पांडवखोली की कथा:
- अल्मोड़ा के पास पांडवखोली को पांडवों के अज्ञातवास की स्थली माना जाता है। स्थानीय कथाओं के अनुसार, पांडव यहां छिपे थे और प्रकृति के बीच समय बिताया। यह स्थान 8000 फीट की ऊंचाई पर है और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है।
पांडवों का उत्तराखंड से संबंध उनकी आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, और ऐतिहासिक यात्राओं से जुड़ा है। वे वनवास, अज्ञातवास, और स्वर्गारोहण के दौरान उत्तराखंड आए, विशेष रूप से हरिद्वार, केदारनाथ, बद्रीनाथ, और माणा जैसे क्षेत्रों में। इन घटनाओं का विवरण महाभारत, स्थानीय लोककथाओं, और पुरातात्विक स्रोतों में मिलता है। पंचकेदार, भीम पुल,
और पांडव नृत्य जैसी कहानियां उत्तराखंड की संस्कृति में पांडवों की अमिट छाप को दर्शाती हैं।
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