विजय जरधारी जी उत्तराखंड के एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, और चिपको आंदोलन के विचारधारा को आगे बढ़ाने वाले पर्यावरण प्रेमी हैं। वे खास तौर पर अपने "बीज बचाओ आंदोलन" (Save the Seeds Movement) के लिए जाने जाते हैं।
🌾 विजय जरधारी जी: संक्षिप्त परिचय
विषय | जानकारी |
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👤 नाम | विजय जरधारी |
🏡 स्थान | उत्तराखंड, भारत (टिहरी गढ़वाल ज़िला) |
🌿 प्रमुख कार्य | बीज बचाओ आंदोलन के संस्थापक |
📚 पहचान | पारंपरिक खेती और जैव विविधता के संरक्षक |
🏆 पुरस्कार | कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान |
🟢 बीज बचाओ आंदोलन (Save the Seeds Movement)
विजय जरधारी जी ने उत्तराखंड में यह आंदोलन शुरू किया ताकि:
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देशी बीजों (देसी धान, गेहूं, मंडुवा, झंगोरा आदि) को संरक्षित किया जा सके।
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किसानों को रासायनिक खाद और संकर बीजों से मुक्ति दिलाई जा सके।
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पारंपरिक जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा सके।
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पर्यावरण, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा हो सके।
👉 यह आंदोलन 1986 में शुरू हुआ और इसमें टिहरी के जड़धार गांव के किसानों की प्रमुख भागीदारी रही।
📚 अन्य योगदान
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उन्होंने हिमालयी क्षेत्र की लोक-परंपराओं, कृषि संस्कृति, और लोक व्यंजन को भी संरक्षित करने में योगदान दिया।
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उन्होंने देशी बीजों की 500 से अधिक प्रजातियाँ संरक्षित की हैं।
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विजय जरधारी जी चिपको आंदोलन से भी जुड़े हुए रहे हैं और सुंदरलाल बहुगुणा जैसे पर्यावरण कार्यकर्ताओं से प्रेरणा ली।
🏆 सम्मान
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उन्हें विभिन्न संस्थानों द्वारा पर्यावरण रक्षक, ग्राम्य सुधारक, और कृषि योद्धा जैसे खिताबों से सम्मानित किया गया है।
✨ निष्कर्ष:
विजय जरधारी जी एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने कृषि, पर्यावरण और संस्कृति को बचाने के लिए अपना जीवन समर्पित किया है। उनका "बीज बचाओ आंदोलन" न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे भारत के किसानों के लिए एक प्रेरणा है।
बिलकुल! विजय जरधारी जी ने उत्तराखंड की लोक संस्कृति, पारंपरिक खेती, और देशी बीजों को लेकर महत्वपूर्ण लेखन कार्य किया है। उन्होंने न सिर्फ खुद लेखन किया, बल्कि कई पत्रिकाओं और पुस्तकों में उनके विचार प्रकाशित हुए हैं।
📚 विजय जरधारी जी द्वारा लिखित और संपादित प्रमुख पुस्तकें / रचनाएँ:
1. बीज एक विचार (Beej Ek Vichar)
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बीज बचाओ आंदोलन की दर्शन, विचारधारा, और महत्व को समझाने वाली पुस्तक।
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इसमें देशी बीजों की संरक्षा, विविधता और पारंपरिक ज्ञान पर गहन चर्चा की गई है।
2. धरती का धन: बीज (Dharti Ka Dhan: Beej)
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देशी बीजों को “धरती का असली धन” बताते हुए यह पुस्तक पारंपरिक खेती की सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उपयोगिता को दर्शाती है।
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किसानों के अनुभवों और संघर्षों को भी साझा किया गया है।
3. गांव बचाओ आंदोलन की गाथा
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यह पुस्तक गांवों के सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व को सामने लाती है।
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“गांव बचाओ” और “गांव को आत्मनिर्भर बनाओ” जैसे आंदोलनों की कहानी।
4. पारंपरिक कृषि प्रणाली पर लेख
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विजय जरधारी जी ने कई हिंदी और अंग्रेज़ी पत्रिकाओं (जैसे Down to Earth, Pahal, Yojana) में लेख और कॉलम भी लिखे हैं।
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विषय: जैव विविधता, देसी बीज, उत्तराखंड की संस्कृति, चिपको आंदोलन, आदि।
📖 यदि आप चाहें तो:
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इन किताबों को उत्तराखंड या दिल्ली के कुछ ग्राम्य विकास संगठनों, एनजीओ प्रकाशनों, या ऑनलाइन मंचों से प्राप्त किया जा सकता है।
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उदाहरण:
👉 [Beej Bachao Andolan Website or Publications]
👉 [Booksellers like Amazon, Hindi Granth Academies]
🧠 निष्कर्ष:
विजय जरधारी जी की रचनाएँ केवल बीजों या खेती तक सीमित नहीं हैं — वे प्रकृति, संस्कृति और मानव जीवन की गहराई को जोड़ती हैं।
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