ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे परियोजना: उद्देश्य और विस्तृत विवरण |Rishikesh-Karnprayag Railway Project: Objective and Detailed Description
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग
रेलवे परियोजना उत्तराखंड में भारतीय रेलवे की एक महत्वाकांक्षी और सामरिक महत्व
की परियोजना है, जिसका उद्देश्य उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में रेल कनेक्टिविटी को
बढ़ाना, चारधाम यात्रा को सुगम बनाना, और
क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास को गति देना है। यह 125.20 किलोमीटर
लंबी ब्रॉड गेज रेल लाइन परियोजना रेल विकास निगम लिमिटेड (RVNL) द्वारा कार्यान्वित की जा रही है। इस परियोजना की लागत लगभग 16,216
करोड़ रुपये आंकी गई है, और इसे 2026 के अंत तक पूरा करने का लक्ष्य है। यह परियोजना उत्तराखंड के पर्वतीय
क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास में एक मील का पत्थर साबित होगी।
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ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे परियोजना |
परियोजना का अवलोकन
- लंबाई: 125.20 किलोमीटर (ब्रॉड गेज, सिंगल ट्रैक)
- स्थान: उत्तराखंड के देहरादून, टिहरी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, और चमोली
जिलों से होकर गुजरती है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- 17
सुरंगें: कुल 105 किलोमीटर का हिस्सा सुरंगों
के भीतर होगा। सबसे लंबी सुरंग 15.1 किलोमीटर
(देवप्रयाग-जनासू) और सबसे छोटी 200 Hawkins:200 मीटर
(सेवई-कर्णप्रयाग) है।
- 12-13
स्टेशन: वीरभद्र, योगनगरी ऋषिकेश, शिवपुरी, ब्यासी, देवप्रयाग,
जनासू, मलेथा, श्रीनगर,
धारीदेवी, तिलनी, घोलतीर,
गौचर, और कर्णप्रयाग (सेवई)।
- 35
पुल: 16 प्रमुख और 19 छोटे
पुल।
- एस्केप टनल्स: 6 किलोमीटर से अधिक लंबी सुरंगों के
साथ निकासी (एस्केप) सुरंगें भी बनाई जा रही हैं।
- निर्माण की शुरुआत: 2019
- लक्षित पूर्णता: दिसंबर 2026
- कुल लागत: लगभग 16,216 करोड़ रुपये
- ठेकेदार: L&T, HCC, NEC, Megha Engineering, और
अन्य
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ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे परियोजना |
परियोजना का उद्देश्य
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग
रेलवे परियोजना के कई महत्वपूर्ण उद्देश्य हैं, जो उत्तराखंड और देश के लिए
सामरिक, आर्थिक, और सामाजिक रूप से
महत्वपूर्ण हैं:
1. चारधाम यात्रा को सुगम बनाना:
- यह रेल लाइन चारधाम (यमुनोत्री, गंगोत्री,
केदारनाथ, और बद्रीनाथ) की यात्रा को आसान
बनाएगी।
- वर्तमान में ऋषिकेश से बद्रीनाथ तक सड़क मार्ग से 11
घंटे लगते हैं, जो इस रेल लाइन के पूरा होने
के बाद केवल 4 घंटे में तय हो जाएगा। कर्णप्रयाग से बद्रीनाथ
का सफर 4.5 घंटे से घटकर 2 घंटे का हो
जाएगा।
- इससे तीर्थयात्रियों को सुविधा होगी और पर्यटन को बढ़ावा
मिलेगा।
2. सामरिक महत्व:
- यह रेल लाइन भारत-चीन सीमा के पास स्थित क्षेत्रों तक सैन्य
साजो-सामान और सैनिकों की आवाजाही को आसान बनाएगी, जो सामरिक
दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
3. आर्थिक और सामाजिक विकास:
- यह परियोजना उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों को देश के अन्य
हिस्सों से जोड़ेगी, जिससे स्थानीय लोगों के लिए रोजगार और
व्यापार के अवसर बढ़ेंगे।
- यह परियोजना पलायन को रोकने और रिवर्स पलायन को प्रोत्साहित
करने में मदद करेगी।
- पर्यटन और स्थानीय व्यापार को बढ़ावा मिलेगा, जिससे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।
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ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे परियोजना |
4. पर्यावरण और सुरक्षा:
- सुरंगों को भूस्खलन, बाढ़, और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए वैज्ञानिक तरीकों (जैसे
न्यू ऑस्ट्रियन टनलिंग मेथड - NATM) से बनाया जा रहा है।
- सभी मौसम में कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने के लिए ऑल-वेदर
रेल लाइन बनाई जा रही है।
5. सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व:
- इस परियोजना को प्रथम विश्व युद्ध के नायक दरबान सिंह नेगी
के सपने से जोड़ा जाता है, जिन्होंने 1918 में ब्रिटिश सरकार से ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन की मांग की थी।
परियोजना की प्रगति (जुलाई 2025
तक)
- सुरंग निर्माण:
- कुल 213 किलोमीटर की सुरंगों (मुख्य और सहायक) में
से 193 किलोमीटर की खोदाई पूरी हो चुकी है।
- 17
मुख्य सुरंगों में से 16 का निर्माण न्यू
ऑस्ट्रियन टनलिंग मेथड (NATM) से किया जा रहा है।
- सबसे लंबी सुरंग (14.58 किलोमीटर, देवप्रयाग-जनासू) का ब्रेकथ्रू 2025 में पूरा हो
चुका है।
- अगस्त 2024 में टीबीएम (टनल बोरिंग मशीन) शिव और
शक्ति ने 1080.11 मीटर सुरंग खोदकर रिकॉर्ड बनाया।
- गौचर में 6.3 किलोमीटर की एस्केप टनल का निर्माण
दिसंबर 2024 में पूरा हुआ।
- श्रीनगर-डुंगरीपंथ के बीच 3.3 किलोमीटर की एस्केप
टनल का ब्रेकथ्रू अक्टूबर 2024 में हुआ।
- रेलवे स्टेशन:
- 13
स्टेशनों में से वीरभद्र और योगनगरी ऋषिकेश स्टेशन 2020 में बनकर तैयार हो चुके हैं।
- शिवपुरी और ब्यासी स्टेशनों के लिए निविदा प्रक्रिया पूरी हो चुकी है,
और शेष 9 स्टेशनों के लिए टेंडर प्रक्रिया
जल्द शुरू होगी।
- श्रीनगर (रानीहाट-नैथाणा) सबसे बड़ा स्टेशन होगा, जिसमें
3 पैसेंजर और 2 गुड्स प्लेटफॉर्म
होंगे।
- स्टेशनों को उत्तराखंड की पर्वतीय शैली में बनाया जा रहा है।
- पुल निर्माण:
- 16
प्रमुख और 19 छोटे पुलों का निर्माण हो रहा है,
जिनमें से 4 प्रमुख और 4 छोटे पुल पूरे हो चुके हैं।
- श्रीनगर, गौचर, और कालेश्वर
में रेलवे स्टेशनों को राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ने के लिए मोटर पुल बनाए गए हैं।
- ट्रैक बिछाने का कार्य:
-
750 करोड़ रुपये की लागत से ट्रैक बिछाने का सर्वे शुरू हो चुका है,
और इरकॉन इंटरनेशनल द्वारा 2027 तक यह कार्य
पूरा करने का लक्ष्य है।
-
70% ट्रैक बिछाने का कार्य पूरा हो चुका है।
- कुल प्रगति:
- परियोजना का 75% से अधिक कार्य पूरा हो चुका है।
- सुरंगों की फाइनल लाइनिंग (कंक्रीट से मजबूती) का कार्य 83 किलोमीटर तक पूरा हो चुका है।
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ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे परियोजना |
तकनीकी और पर्यावरणीय पहलू
- सुरक्षा मानक:
- सुरंगों को वाटरप्रूफ और भूकंपरोधी बनाया जा रहा है।
- भूस्खलन से बचाने के लिए पोर्टल स्टेबलाइजेशन किया गया है।
- आपातकालीन स्थिति के लिए टनल कंट्रोल सेंटर (मुरादाबाद और ऋषिकेश में) और
डीजल इंजन की व्यवस्था की गई है।
- पर्यावरणीय प्रभाव:
- कुछ क्षेत्रों में सुरंग निर्माण के कारण जलस्रोतों के सूखने की शिकायतें
आई हैं, जिसके लिए स्थानीय लोग वैकल्पिक जल व्यवस्था की मांग
कर रहे हैं।
- रेल विकास निगम का दावा है कि सुरंगें वैज्ञानिक तरीके से बनाई जा रही हैं,
और पर्यावरण और जलस्रोतों पर प्रभाव को कम करने के लिए आईआईटी
रुड़की और वैश्विक विशेषज्ञों की सलाह ली जा रही है।
चुनौतियाँ
1. भौगोलिक कठिनाइयाँ:
- पहाड़ी क्षेत्रों में निर्माण कार्य चुनौतीपूर्ण है,
जिसके कारण समयसीमा में देरी हुई। कोविड-19 के
कारण भी परियोजना 2 साल पीछे चली गई।
2. भूमि अधिग्रहण:
- 2017-2022 के बीच पौड़ी, रुद्रप्रयाग,
चमोली, और टिहरी जिलों में भूमि अधिग्रहण पूरा
हो चुका है।
- प्रभावित गांवों (जैसे सौड, श्रीकोट,
डुंगरीपंथ, आदि) के लिए पुनर्वास और मुआवजा
योजनाएँ लागू की गई हैं।
3. प्रशासनिक बाधाएँ:
- खनन और अन्य अनुमतियों में देरी के कारण निर्माण कार्य धीमा
हुआ।
4. पर्यावरणीय चिंताएँ:
- सुरंग निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर पहाड़ काटे गए,
जिससे पर्यावरण को नुकसान की आशंका व्यक्त की जा रही है।
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ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे परियोजना |
परियोजना का महत्व और प्रभाव
- पर्यटन: चारधाम यात्रा और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, जिससे
स्थानीय रोजगार और स्वरोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
- आर्थिक विकास: रेल कनेक्टिविटी से व्यापार और परिवहन की लागत कम होगी।
- सामाजिक प्रभाव: उत्तराखंड के 25% लोग, जो आज तक रेल यात्रा नहीं कर पाए, उन्हें सुविधा
मिलेगी।
- सामरिक लाभ: सीमावर्ती क्षेत्रों में सैन्य आवागमन आसान होगा।
- सांस्कृतिक महत्व: परियोजना उत्तराखंड की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत
को संरक्षित करते हुए विकास को बढ़ावा देगी।
इतिहास और पृष्ठभूमि
- इस परियोजना का विचार पहली बार 1924 में अंग्रेजों
द्वारा सर्वे किया गया था।
- 1996 में सतपाल महाराज के केंद्रीय मंत्री रहते हुए इसका सर्वेक्षण हुआ,
लेकिन कार्य 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के
आने के बाद गति पकड़ सका।
- 2015 में निर्माण कार्य शुरू हुआ, और 2019 से यह परियोजना पूर्ण गति से चल रही है।
भविष्य की योजनाएँ
- यह रेल लाइन चारधाम रेल कॉरिडोर का पहला चरण है, जिसे
भविष्य में गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ,
और बद्रीनाथ तक विस्तारित किया जाएगा।
- परियोजना के पूरा होने के बाद उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में रेल
कनेक्टिविटी देश के अन्य हिस्सों से बेहतर होगी।
निष्कर्ष
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग
रेलवे परियोजना उत्तराखंड के लिए एक ऐतिहासिक और क्रांतिकारी कदम है। यह न केवल
तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए यात्रा को सुगम बनाएगी, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए
आर्थिक और सामाजिक अवसर भी बढ़ाएगी। सामरिक दृष्टि से भी यह परियोजना महत्वपूर्ण
है, क्योंकि यह भारत-चीन सीमा के पास सैन्य आवागमन को आसान
बनाएगी। हालांकि, पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियों को ध्यान
में रखते हुए, इस परियोजना को संतुलित और टिकाऊ तरीके से
पूरा करना आवश्यक है। 2026 के अंत तक इस परियोजना के पहले
चरण के पूरा होने की उम्मीद है, जो उत्तराखंड के विकास में
एक नया अध्याय जोड़ेगी।
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