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Tungnath Temple |
तुंगनाथ मंदिर: इतिहास, संस्कृति और आस्था का अद्वितीय संगम
1. भूमिका
भारत एक धर्म प्रधान देश है, जहां मंदिर केवल पूजा स्थलों के रूप में ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक धरोहरों के रूप में भी स्थापित हैं। हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड को "देवभूमि" कहा जाता है, क्योंकि यहां हजारों मंदिरों का वास है। इन्हीं पवित्र स्थलों में से एक है तुंगनाथ मंदिर, जो पंचकेदारों में तीसरे स्थान पर आता है और विश्व का सबसे ऊँचाई पर स्थित शिव मंदिर माना जाता है।
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2. भौगोलिक स्थिति और पहुंच
2.1 तुंगनाथ का स्थान
तुंगनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में, समुद्र तल से लगभग 3,680 मीटर (12,073 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर चोपता से लगभग 3.5 किलोमीटर की ट्रेक दूरी पर स्थित है और हिमालय की चंद्रशिला चोटी के नीचे स्थित है।
2.2 पहुंच का मार्ग
तुंगनाथ तक पहुंचने के लिए सबसे सामान्य मार्ग है:
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ऋषिकेश → रुद्रप्रयाग → ऊखीमठ → चोपता → तुंगनाथ।
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सड़क मार्ग से चोपता तक वाहन पहुँच सकते हैं, इसके बाद 3.5 किलोमीटर की ट्रेक द्वारा मंदिर तक पहुँचना होता है।
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निकटतम रेलवे स्टेशन: ऋषिकेश (लगभग 215 किमी दूर)
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निकटतम हवाई अड्डा: जॉलीग्रांट (देहरादून)
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3. पौराणिक इतिहास
तुंगनाथ मंदिर की स्थापना महाभारत काल से जुड़ी मानी जाती है। मान्यता है कि महाभारत के युद्ध के पश्चात पांडवों ने भगवान शिव को खोजने के लिए हिमालय की यात्रा की थी, ताकि युद्ध में मारे गए अपने संबंधियों के पापों से मुक्ति पा सकें।
3.1 शिव का रौद्र रूप
भगवान शिव पांडवों से क्रोधित थे और उनसे मिलने से इनकार कर रहे थे। उन्होंने एक बैल (नंदी) का रूप लेकर गुप्तकाशी में छिपने का प्रयास किया। जब पांडवों ने बैल को पहचाना, तो वह भागने लगे और पंच स्थानों पर उनके शरीर के विभिन्न भाग प्रकट हुए:
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केदारनाथ – पीठ
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तुंगनाथ – भुजाएं
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रुद्रनाथ – मुख
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मध्यमहेश्वर – नाभि
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कल्पेश्वर – जटा
तुंगनाथ में भगवान शिव की भुजाओं की पूजा होती है। इस प्रकार यह पंचकेदारों में तीसरे स्थान पर आता है।
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4. पंचकेदारों में स्थान
तुंगनाथ को पंचकेदारों का तीसरा मंदिर माना जाता है। पंचकेदार वे पाँच मंदिर हैं जहाँ भगवान शिव के अंगों की पूजा होती है। ये पांच मंदिर निम्नलिखित हैं:
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केदारनाथ – प्रमुख एवं सबसे प्रसिद्ध
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मध्यमहेश्वर – नाभि रूप
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तुंगनाथ – भुजा रूप
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रुद्रनाथ – मुख रूप
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कल्पेश्वर – जटा रूप
इन सभी मंदिरों की यात्रा को "पंचकेदार यात्रा" कहा जाता है, जो आध्यात्मिक साधकों और भक्तों के लिए अत्यंत पुण्यकारी मानी जाती है।
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5. स्थापत्य और निर्माण शैली
तुंगनाथ मंदिर का निर्माण उत्तराखंडी पारंपरिक शैली में हुआ है, जिसे कठ-कौनी शैली कहा जाता है। इसमें पत्थरों को एक विशेष तकनीक से जोड़ा जाता है जिससे यह सैकड़ों सालों तक भूकंप और प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर सकता है।
5.1 प्रमुख विशेषताएं
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मंदिर का निर्माण स्लेट और ग्रेनाइट पत्थरों से हुआ है।
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गर्भगृह छोटा, परंतु गूढ़ आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा हुआ है।
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शिखर शैली की वास्तुकला, जिसमें एक मुख्य गुंबदनुमा शिखर है।
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गर्भगृह के बाहर एक मंडप और प्रवेश द्वार स्थित है।
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मंदिर परिसर में अन्य छोटे मंदिर भी हैं, जो देवी-देवताओं को समर्पित हैं।
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6. तुंगनाथ का आध्यात्मिक महत्व
तुंगनाथ मंदिर न केवल शिव भक्तों के लिए, बल्कि योग, ध्यान और साधना करने वालों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है।
6.1 पंच तत्वों से संबंध
तुंगनाथ को आकाश तत्व का प्रतिनिधि माना जाता है, जबकि अन्य पंचकेदार अन्य तत्वों से जुड़े हैं। योगियों के लिए यह क्षेत्र साधना की ऊँचाई और ऊर्जा का केंद्र है।
6.2 चंद्रशिला और ध्यान
तुंगनाथ के ऊपर स्थित चंद्रशिला चोटी से सूर्य की पहली किरण दिखाई देती है। यह स्थान ध्यान और प्राचीन ऋषियों की तपोभूमि रहा है।
7. संतों और ऋषियों का योगदान
कई प्राचीन ऋषियों ने तुंगनाथ और चंद्रशिला क्षेत्र में तपस्या की। इनमें रैभ्य ऋषि, अगस्त्य ऋषि और आदिगुरु शंकराचार्य के नाम प्रमुख हैं।
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शंकराचार्य जी ने यहाँ पर कुछ समय ध्यान किया और पंचकेदार यात्रा का प्रचार किया।
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स्थानीय लोक मान्यताओं में कई योगी और साधक आज भी तुंगनाथ की गुफाओं में ध्यान करते देखे जाते हैं।
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8. चोपता और चंद्रशिला: प्राकृतिक सौंदर्य
8.1 चोपता – मिनी स्विट्जरलैंड
चोपता को "भारत का मिनी स्विट्जरलैंड" कहा जाता है। यहां का वातावरण अत्यंत शुद्ध और शांतिपूर्ण होता है। हिमालय की चोटियों के नज़ारे, विशेष रूप से नंदा देवी, त्रिशूल, और चौखंभा, यहाँ से स्पष्ट दिखाई देते हैं।
8.2 चंद्रशिला ट्रेक
तुंगनाथ से लगभग 1.5 किमी ऊपर चंद्रशिला चोटी है। यह स्थान सूर्य की पहली किरण को देखने के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ से 360 डिग्री हिमालय का नज़ारा दिखता है।
9. मौसम और यात्रा का उपयुक्त समय
9.1 मौसम अनुसार अनुभव:
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मई-जून: बर्फ पिघलने के बाद मंदिर खुलता है।
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जुलाई-सितंबर: मानसून में ट्रेक थोड़ा कठिन हो सकता है।
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अक्टूबर-नवंबर: सबसे उपयुक्त समय, मौसम ठंडा और साफ।
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दिसंबर-अप्रैल: भारी बर्फबारी, मंदिर बंद रहता है।
9.2 मंदिर बंद और खुलने का समय
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मंदिर खुलता है: अक्षय तृतीया के दिन (अप्रैल-मई)
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मंदिर बंद होता है: दीपावली के बाद
10. पुजारी परंपरा और व्यवस्था
तुंगनाथ मंदिर की पूजा मुख्य रूप से मक्कू गांव के ब्राह्मणों द्वारा की जाती है, जिन्हें ‘खास पंडा’ कहा जाता है। यह परंपरा पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है।
10.1 अन्य व्यवस्था:
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उत्तराखंड सरकार और बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति देखरेख करती है।
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विशेष आयोजनों पर स्थानीय ग्राम सभा भी आयोजन में भाग लेती है।
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11. मेले और त्यौहार
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अक्षय तृतीया: मंदिर के कपाट खुलते हैं।
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श्रावण मास: शिव विशेष पूजन।
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महाशिवरात्रि: विशेष रात्रि जागरण और भजन।
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दीपावली: कपाट बंद करने से पहले विशेष पूजा।
12. पर्यावरणीय पहल और संरक्षण
चोपता-तुंगनाथ क्षेत्र क्यारी बुग्याल, दुगलबिट्टा जैसे संवेदनशील पारिस्थितिक क्षेत्रों में आता है। कई NGO और वन विभाग मिलकर क्षेत्र की सफाई और संरक्षण हेतु कार्य कर रहे हैं।
13. पर्यटन के लिए मार्गदर्शन
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होटल: चोपता, ऊखीमठ और रुद्रप्रयाग में उपलब्ध।
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कैंपिंग: ट्रेक मार्ग पर कई कैंप साइट्स।
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जरूरी वस्तुएं: गर्म कपड़े, ट्रेकिंग जूते, दवा, पानी की बोतल, टॉर्च आदि।
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14. तुंगनाथ से जुड़ी लोककथाएं
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कहते हैं कि भगवान राम ने भी यहां साधना की थी।
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स्थानीय मान्यता है कि बर्फबारी के दौरान भी शिवलिंग को कभी पूरी तरह ढका नहीं जा सकता।
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चंद्रशिला से जुड़ी मान्यता है कि चंद्रमा ने यहाँ तप किया था, इसी कारण इसे "चंद्रशिला" कहा गया।
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15. निष्कर्ष
तुंगनाथ मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह आत्मा की ऊँचाई, विचार की पवित्रता, और प्रकृति के प्रति प्रेम का प्रतीक है। यह स्थान भारत की आध्यात्मिक परंपरा, हिमालय की शुद्धता, और शिवभक्ति की पराकाष्ठा का प्रतीक है।
जो भी इस पवित्र स्थान पर पहुँचता है, वह मन की शांति, दृढ़ता, और ईश्वर से निकटता का अनुभव करता है। तुंगनाथ की यात्रा जीवन के लिए एक नई दिशा और ऊर्जा प्रदान करती है।
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