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गढ़वाली लोकोक्तियाँ और उनके अर्थ|Garhwali proverbs and their meaning |
गढ़वाली लोकोक्तियाँ और उनके अर्थ
"जैसी बारी, वैसा बीज"
o मतलब: जैसा काम करेंगे,
वैसा ही फल मिलेगा।
"जेठ मास को सूरज,
बिन
पंखा का पंखा"
o मतलब: कठिन समय या तपती गर्मी का वर्णन।
"थालि मैं हाथ,
अन्न
मैं बात"
o मतलब: बिना मेहनत के खाने की चाह रखना।
"पानी बग्यां,
मछली
पक्यां"
o मतलब: सही समय पर सही अवसर का लाभ उठाना।
"दूध को दूध, पानी को पानी"
o मतलब: सच्चाई को स्पष्ट करना।
"दूध पीणि कै लिकड़,
छां
बठणि कै ढिकड़"
o मतलब: आराम से बैठे-बैठे फायदा लेना।
"आग बिना धूंआ नई"
o मतलब: बिना कारण के बातें नहीं होतीं।
"जेठ को बासा,
पौंस
को घाम"
o मतलब: असामान्य और अजीब स्थिति का वर्णन।
"बिन बाजणि बाजा"
o मतलब: बिना वजह शोर मचाना।
"गाड़ बण्यों तौं बास"
o मतलब: काम बिगड़ने के बाद पछताना।
"आग बणि बणि च्यौंरा"
- मतलब: बार-बार मुसीबत या परेशानी का आना।
"बिन ब्वारको खेत"
- मतलब: बिना मालिक का काम बिगड़ जाना।
"थालि में लूण,
चूल्हे
में धूंआ"
- मतलब: थोड़ा सा सुख,
बाकी सब मुश्किलें।
"हाट में बजनु,
घऱ
में भजनु"
- मतलब: बाहर ताकतवर दिखना,
घर में कमजोर रहना।
"राख बीनणि कै कौआ"
- मतलब: बेकार की खोज में समय बर्बाद करना।
"अन्धेर में तीर"
- मतलब: बिना सोचे-समझे काम करना।
"लठ्ठ ले नि मारन,
बोलि
ले मारन"
- मतलब: मीठे या कड़वे बोल से चोट करना।
"खोली में बघ्वार"
- मतलब: छोटा घर,
बड़े-बड़े काम।
"गाड़ में बाघ,
खेत
में सांप"
- मतलब: हर जगह खतरा होना।
"दूध पीणि कै बिल्ली"
- मतलब: चोरी छुपे फायदा उठाना।
"भूख में कणिक,
प्यास
में गाड़"
- मतलब: ज़रूरत के समय छोटी मदद भी बड़ी लगती
है।
"कूड़ी में बघ,
घर
में बिल्ला"
- मतलब: बाहर दिखावा,
अंदर कमजोरी।
"घुघुति की गूंठ"
- मतलब: छोटी चीज़ में बड़ी यादें जुड़ी होना।
"भेली में मिठास,
मन
में प्यास"
- मतलब: बाहर से मीठा,
अंदर से लालच।
"पाणि बिना गाड़,
बात
बिना मोल"
- मतलब: बिना असलियत की चीज़ बेकार है।
"खाट में धूंआ,
खेत
में घास"
- मतलब: हर जगह परेशानी होना।
"काटि देणु भैंस,
पाणी
देणु लाट"
- मतलब: काम खत्म होने के बाद मदद करना।
"गाड़ में पानी,
मन
में रानी"
- मतलब: मन में बड़ी-बड़ी इच्छाएँ रखना।
"जेठ को घाम, पौष को ठंड"
- मतलब: चरम मौसम का वर्णन।
"भुलि में भैंस,
घाम
में घास"
- मतलब: गलत समय पर काम करना।
"घुघुती की उड़ान,
कौंवा
की चाल"
- मतलब: अलग-अलग स्वभाव और आदतें।
"थालि में मांड,
मन
में झगड़"
- मतलब: बाहर से ठीक लगना,
अंदर मन में खटास।
"मालक बिना खेत"
- मतलब: बिना जिम्मेदारी वाला काम बिगड़ना।
"कुंवा में मछली,
गाड़
में बाघ"
- मतलब: जहां देखो,
वहीं खतरा।
"मांड बिना भात"
- मतलब: अधूरी चीज़।
"धान बिना खेत,
घास
बिना जंगल"
- मतलब: असली चीज़ के बिना नाम बेकार है।
"जेठ में पाणी,
सावण
में धूंआ"
- मतलब: मौसम के उलटे हालात।
"थाली में लूण,
मन
में घाम"
- मतलब: बाहर साधारण,
अंदर कष्ट।
"बाघ बिना डर,
भेड़
बिना झुंड"
- मतलब: असली वजह के बिना डर फैलना।
"भुलि में बगुल,
खेत
में चील"
- मतलब: हर जगह अलग खतरे।
"मंगणि कूंण, दाणि नि ऊण"
- अर्थ: भीख में मिली चीज़ कभी पूरी नहीं होती।
- संदर्भ: मेहनत से कमाई चीज़ ही भरपूर और संतोषजनक
होती है।
"कुल्ली में पाणी,
मन
में राणी"
- अर्थ: साधन छोटे, लेकिन इच्छाएँ बड़ी।
- संदर्भ: गरीब आदमी के बड़े-बड़े सपनों पर तंज।
"दूध बिना चाय,
मांड
बिना भात"
- अर्थ: मुख्य चीज़ के बिना बाकी सब बेकार।
- संदर्भ: अधूरी या बेकार व्यवस्था पर कहा जाता है।
"गाड़ नि तैरि,
समुंदर
का सपना"
- अर्थ: छोटी क्षमता के साथ बड़े-बड़े ख्वाब देखना।
- संदर्भ: ऐसे व्यक्ति के लिए जो अपनी औकात से बड़े
सपने देखता हो।
"भुलि में बाघ,
घाम
में पंखा"
- अर्थ: ज़रूरत के समय सही चीज़ न मिलना।
"अगास में घास,
धरती
में तारा"
- अर्थ: नामुमकिन चीज़ का सपना देखना।
"लौंग को लच्छा,
लसण
को गंध"
- अर्थ: एक की अच्छाई, दूसरे की खासियत का अलग असर।
- संदर्भ: हर चीज़ का अपना अलग महत्व होता है।
"थालि में दाल,
मन
में भूखाल"
- अर्थ: थोड़ी सुविधा, लेकिन भूख पूरी न मिटना।
"भेली में मिठास,
मन
में प्यास"
- अर्थ: बाहर से मीठा व्यवहार,
भीतर से लालच।
"घाम में मांड,
सर्दी
में बाण"
- अर्थ: तकलीफ के समय तकलीफ और बढ़ जाना।
"काख नि गूंठ,
मन
में खेत"
- अर्थ: कुछ न होते हुए भी बड़े-बड़े सपने देखना।
"बिन दांत को कुत्तो,
बिन
सींग को बाख"
- अर्थ: बिना ताकत वाला व्यक्ति खतरनाक नहीं होता।
"अगास में उड़न,
पाख
बिना पंछी"
- अर्थ: नामुमकिन कोशिश करना।
"भुलि में बेल,
मन
में खेल"
- अर्थ: काम का आधार छोटा,
लेकिन उम्मीद बड़ी।
"छां में धूप,
धूप
में छां"
- अर्थ: हर परिस्थिति में उल्टा सोचना या असंतुष्ट
रहना।
मेहनत
और फल से जुड़ी लोकोक्तियाँ
"जैसी करणी, वैसी भरनी" –
जैसा करेंगे, वैसा फल मिलेगा।
"धान बुनि कै भात,
गेहूं
बुनि कै रोटी" – मेहनत का ही फल खाने को मिलता है।
"जाड़ों में बीज,
गर्मी
में फसल" – सही समय पर मेहनत करनी चाहिए।
"बिन बोए फसल नहीं" –
बिना मेहनत के कुछ नहीं मिलता।
"घाम में पसीना,
बरसात
में अनाज" – मेहनत का इनाम मिलता है।
समझदारी
और अनुभव
"आग बिना धूंआ नई" –
हर बात के पीछे कारण होता है।
"एक ही लकड़ी से पूरा चूल्हा नहीं जलता" –
एक ही उपाय से सारा काम नहीं होता।
"भेड़ के साथ बाघ को मत छोड़" –
भरोसा सोच-समझकर करो।
"अक्ल से काम लो,
ताकत
से नहीं" – बुद्धि का महत्व ताकत से ज्यादा है।
"जाड़े में घाम,
गर्मी
में छां" – सही समय पर सही जगह रहना चाहिए।
समय
और परिस्थिति
"भुलि में घाम,
सावण
में पंखा" – ज़रूरत के समय चीज़ न मिलना।
"जेठ का पानी,
पौष
का घाम" – उलटे मौसम का हाल।
"बीते समय को वापस नहीं लाया जा सकता" –
समय अमूल्य है।
"बिन मौसम का बरसात" –
समय से पहले की घटना।
"धान पिसि कै भात,
गेहूं
पिसि कै रोटी" – हर चीज़ का समय तय है।
स्वभाव
और आदतें
"दूध पीणि कै बिल्ली" –
चोरी-छुपे फायदा उठाना।
"लठ्ठ बिना मार,
बोलि
ले मार" – मीठे/कड़वे बोल से चोट करना।
"घुघुति की गूंठ" –
छोटी चीज़ में भावनाएँ जुड़ी होना।
"भेली में मिठास,
मन
में प्यास" – बाहर मीठा, अंदर
लालच।
"कुंवा में मछली,
गाड़
में बाघ" – हर जगह खतरा होना।
गरीबी
और तंगी
"कुल्ली में पानी,
मन
में रानी" – छोटी औकात, बड़े
सपने।
"भुलि में बेल,
मन
में खेल" – सीमित साधनों के बावजूद ऊँची उम्मीदें।
"मंगणि कूंण, दाणि नि ऊण" –
भीख में मिला कभी पूरा नहीं होता।
"काख नि गूंठ,
मन
में खेत" – कुछ नहीं, पर
सपने बड़े।
"थालि में लूण,
चूल्हे
में धूंआ" – थोड़ी सुविधा, बाकी
मुश्किलें।
F. रिश्ते और समाज
"बिन बाजणि बाजा" –
बिना कारण शोर मचाना।
"गाड़ बण्यों तौं बास" –
काम बिगड़ने के बाद पछताना।
"हाट में बजनु,
घर
में भजनु" – बाहर ताकतवर दिखना, घर में कमजोर होना।
"राख बीनणि कै कौआ" –
बेकार जगह खोज करना।
"एकता में बल,
बिखराव
में हल" – मिलजुल कर रहना ताकत देता है।
"भुलि में भैंस,
घाम
में घास" – गलत समय पर काम करना।
"पानी बग्यां,
मछली
पक्यां" – सही समय पर अवसर पाना।
"दूध को दूध, पानी को पानी" –
सच्चाई को स्पष्ट करना।
"थालि में मांड,
मन
में झगड़" – बाहर से अच्छा, भीतर
से झगड़ा।
"गाड़ में बाघ,
खेत
में सांप" – हर जगह खतरा होना।
G. मौसम और प्रकृति
"जेठ को घाम, पौष को ठंड" –
मौसम के चरम हालात।
"भुलि में बाघ,
घाम
में पंखा" – जरूरत के समय चीज़ न मिलना।
"अगास में घास,
धरती
में तारा" – नामुमकिन चीज़ का सपना।
"घाम में मांड,
सर्दी
में बाण" – तकलीफ के समय तकलीफ और बढ़ना।
"जेठ में पानी,
सावण
में धूंआ" – उलटा मौसम।
"बिन पंखा का पंखा" –
बेकार चीज़।
"धान बिना खेत,
घास
बिना जंगल" – मूल चीज़ के बिना बाकी बेकार।
"कुंवा में पानी,
गाड़
में बाघ" – अच्छे के साथ बुरा भी।
"घुघुति की उड़ान,
कौंवा
की चाल" – स्वभाव और आदतें अलग।
"थालि में दाल,
मन
में भूखाल" – थोड़ी सुविधा, बाकी
भूख।
H. दुर्लभ और पुराने समय की लोकोक्तियाँ
"भुलि में बगुल,
खेत
में चील" – हर जगह अलग खतरे।
"मालक बिना खेत" –
बिना जिम्मेदार मालिक का काम बिगड़ना।
"खोली में बघ्वार" –
छोटे स्थान में बड़े काम करना।
"भूख में कणिक,
प्यास
में गाड़" – जरूरत के समय छोटी चीज़ भी बड़ी लगती है।
"काख नि गूंठ,
मन
में खेत" – साधन न होना, पर
सपने बड़े रखना।
"अन्धेर में तीर" –
बिना सोचे-समझे काम करना।
"थालि में लूण,
मन
में घाम" – बाहर से साधारण, अंदर से कष्ट।
"बिन सींग का बाख" –
ताकत के बिना डर फैलाना।
"भेली में मिठास,
मन
में प्यास" – मीठा बोल, लेकिन
लालच छुपा होना।
"लौंग का लच्छा,
लसण
की गंध" – अलग-अलग चीजों की अपनी खासियत।
I. लोकोक्तियाँ (अंतिम दुर्लभ)
"थालि में मांड,
मन
में खटास" – बाहर अच्छा, अंदर
कटुता।
"गाड़ में घास,
खेत
में पत्थर" – संसाधन गलत जगह होना।
"बिन बीज का खेत" –
नतीजा न मिलने वाला प्रयास।
"आग बणि बणि च्यौंरा" –
बार-बार मुसीबत आना।
"धान बिना खेत,
घास
बिना जंगल" – मूल चीज के बिना बाकी सब बेकार।
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