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गोविंद बल्लभ पंत (10 सितंबर 1887 - 7 मार्च 1961) के बारे में संपूर्ण जानकारी |उत्तराखंड के महान व्यक्तित्व |
गोविंद बल्लभ पंत (10 सितंबर 1887 - 7 मार्च 1961) भारत
के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता
और उत्तराखंड के गौरव थे। वे स्वतंत्र भारत में उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री
और बाद में भारत के केंद्रीय गृह मंत्री बने। उन्हें भारत रत्न (1957) से सम्मानित किया गया। नीचे उनके जीवन, योगदान और प्रभाव की संपूर्ण जानकारी दी गई है:
जीवन और प्रारंभिक पृष्ठभूमि
- जन्म और परिवार: गोविंद बल्लभ पंत का
जन्म 10 सितंबर 1887 को अल्मोड़ा जिले के खूंट गांव (उत्तराखंड, उस समय संयुक्त प्रांत का हिस्सा) में हुआ था। उनके पिता बद्री दत्त
पंत एक सरकारी कर्मचारी थे, और
माता श्रीमती गोमती देवी एक धार्मिक और साधारण महिला थीं। गोविंद बल्लभ का बचपन
पहाड़ी क्षेत्रों की कठिनाइयों और प्राकृतिक सुंदरता के बीच बीता।
- शिक्षा: गोविंद बल्लभ पंत ने अपनी
प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा के स्थानीय स्कूल से प्राप्त की। 1905 में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला
लिया और 1907 में बीए की डिग्री हासिल की। इसके
बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई की और 1909 में
एलएलबी की डिग्री प्राप्त की। उनकी शिक्षा ने उन्हें सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों
को समझने की गहरी समझ दी।
कैरियर और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
- वकालत की शुरुआत: 1910 में पंत ने काशीपुर (आधुनिक उत्तराखंड) में वकालत
शुरू की। उनकी वकालत के दौरान वे सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों से जुड़ गए और जल्द
ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हो गए।
- स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी:
- काकोरी कांड (1925): पंत ने काकोरी कांड के क्रांतिकारियों (राम
प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान आदि) का मुकदमा
लड़ा। उनकी वकालत ने क्रांतिकारियों के प्रति सहानुभूति जगाने में मदद की, हालांकि वे उन्हें बचा नहीं सके।
- नमक सत्याग्रह (1930): पंत ने गांधीजी के नमक सत्याग्रह में सक्रिय भाग
लिया। इस दौरान उन्हें गिरफ्तार किया गया और कई महीनों तक जेल में रखा गया। उनकी
गिरफ्तारी ने संयुक्त प्रांत में आंदोलन को और तेज कर दिया।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन (1932): इस आंदोलन में भी पंत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
और फिर से जेल गए। वे गांधीवादी सिद्धांतों से गहरे प्रभावित थे और अहिंसा में
विश्वास रखते थे।
- भारत छोड़ो आंदोलन (1942): इस आंदोलन के दौरान पंत ने संयुक्त प्रांत में
बड़े पैमाने पर प्रदर्शन और सभाओं का आयोजन किया। उनकी नेतृत्व क्षमता ने ब्रिटिश
शासन को चुनौती दी।
- कुमाऊं परिषद से जुड़ाव: पंत कुमाऊं
परिषद के संस्थापक सदस्यों में से एक थे, जिसकी
स्थापना 1915 में हरगोविंद पंत ने की थी। इस संगठन
ने बेगार प्रथा (जबरन श्रम) के खिलाफ आंदोलन चलाया और कुमाऊं क्षेत्र में
राष्ट्रीय चेतना जगाई।
राजनीतिक जीवन
- संयुक्त प्रांत के मुख्यमंत्री (1937-1939
और 1946-1954):
- 1937 में
प्रांतीय चुनावों में कांग्रेस की जीत के बाद पंत संयुक्त प्रांत (आधुनिक उत्तर
प्रदेश) के पहले मुख्यमंत्री बने। हालांकि, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कांग्रेस मंत्रिमंडल ने इस्तीफा दे दिया,
और वे 1939 में पद छोड़ गए।
- स्वतंत्रता के बाद 1946 में वे फिर से संयुक्त प्रांत के मुख्यमंत्री बने
और 1954 तक इस पद पर रहे। उनके कार्यकाल में
संयुक्त प्रांत में कई महत्वपूर्ण सुधार हुए:
- जमींदारी
उन्मूलन: पंत ने 1950 में जमींदारी प्रथा को समाप्त करने
के लिए कानून पारित किया, जिसने
किसानों को उनकी जमीन का मालिक बनाया और सामाजिक-आर्थिक असमानता को कम किया।
- शिक्षा
और बुनियादी ढांचा: उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार किया।
पंतनगर में जीबी पंत कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना उनके नाम पर हुई, जो आज भी भारत के प्रमुख कृषि विश्वविद्यालयों
में से एक है।
- केंद्रीय गृह मंत्री (1955-1961):
- 1955 में
पंत भारत के केंद्रीय गृह मंत्री बने। इस पद पर रहते हुए उन्होंने कई महत्वपूर्ण
कार्य किए:
- राज्य
पुनर्गठन आयोग (1956): पंत ने भाषाई आधार पर राज्यों के
पुनर्गठन का समर्थन किया। उनकी सिफारिशों के आधार पर भारत के राज्यों का पुनर्गठन
हुआ, जिसने आधुनिक भारत के राज्य ढांचे को
आकार दिया।
- हिंदी
को बढ़ावा: पंत हिंदी भाषा के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने हिंदी को भारत की राजभाषा
के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, हालांकि वे अन्य भाषाओं के प्रति भी सम्मान रखते थे।
व्यक्तिगत जीवन और मूल्य
- सादा जीवन: पंत एक सादा जीवन जीने
वाले व्यक्ति थे। वे गांधीवादी सिद्धांतों से प्रभावित थे और स्वदेशी, अहिंसा और सामाजिक समानता में विश्वास रखते थे।
- परिवार: पंत की पत्नी का नाम श्रीमती
पुष्पा पंत था। उनके तीन बेटे और दो बेटियां थीं। उनके बेटे केसी पंत भी बाद में
एक प्रमुख राजनेता बने और केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्य किया।
- धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्य: पंत एक
धार्मिक व्यक्ति थे और हिंदू मूल्यों में विश्वास रखते थे, लेकिन वे धर्मनिरपेक्षता के भी समर्थक थे। उन्होंने हमेशा विभिन्न
समुदायों के बीच एकता पर जोर दिया।
पुरस्कार और सम्मान
- भारत रत्न (1957): गोविंद बल्लभ पंत को 1957 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें स्वतंत्रता
संग्राम और स्वतंत्र भारत के निर्माण में उनके योगदान के लिए दिया गया।
- पंतनगर विश्वविद्यालय: उनके नाम पर
पंतनगर में गोविंद बल्लभ पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की स्थापना की गई,
जो भारत में कृषि अनुसंधान और शिक्षा का एक
प्रमुख केंद्र है।
निधन
- गोविंद बल्लभ पंत का निधन 7 मार्च 1961 को नई दिल्ली में हुआ। वे अपने अंतिम समय तक केंद्रीय गृह मंत्री के
पद पर कार्यरत थे। उनके निधन से भारत ने एक महान नेता खो दिया। उनकी अंतिम यात्रा
में हजारों लोग शामिल हुए, और
उन्हें दिल्ली में राजघाट के पास अंतिम संस्कार किया गया।
सांस्कृतिक प्रभाव और विरासत
- स्वतंत्रता संग्राम में योगदान: पंत
को उत्तराखंड के सबसे बड़े स्वतंत्रता सेनानियों में से एक माना जाता है। उन्होंने
कुमाऊं और संयुक्त प्रांत में राष्ट्रीय चेतना को जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाई।
- राजनीतिक योगदान: जमींदारी उन्मूलन,
राज्य पुनर्गठन, और हिंदी को राजभाषा बनाने में उनके योगदान ने स्वतंत्र भारत के ढांचे
को मजबूत किया।
- उत्तराखंड की पहचान: पंत उत्तराखंड
के पहले बड़े राजनेता थे, जिन्होंने
राष्ट्रीय मंच पर पहाड़ी क्षेत्रों की समस्याओं को उठाया। उनकी विरासत आज भी
उत्तराखंड के लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
- शिक्षा और अनुसंधान: पंतनगर
विश्वविद्यालय और उनके नाम पर कई अन्य संस्थान उनकी शैक्षिक और सामाजिक दृष्टि को
दर्शाते हैं।
चुनौतियां और आलोचनाएं
- हिंदी के प्रति रुख: पंत के हिंदी को
राजभाषा बनाने के प्रयासों की कुछ लोगों ने आलोचना की, खासकर दक्षिण भारत में, जहां
इसे भाषाई प्रभुत्व के रूप में देखा गया। हालांकि, पंत ने हमेशा अन्य भाषाओं के प्रति सम्मान दिखाया।
- स्वास्थ्य समस्याएं: स्वतंत्रता
संग्राम के दौरान बार-बार जेल जाने और कठिन परिश्रम के कारण उनके स्वास्थ्य पर
बुरा असर पड़ा। उनके अंतिम वर्षों में वे कई बीमारियों से जूझ रहे थे।
सारांश
गोविंद बल्लभ पंत (1887-1961)
उत्तराखंड के एक महान स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता और समाज सुधारक थे। 10 सितंबर 1887 को अल्मोड़ा के खूंट गांव में जन्मे पंत ने स्वतंत्रता संग्राम में
सक्रिय भाग लिया, काकोरी कांड के क्रांतिकारियों का
मुकदमा लड़ा, और नमक सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आंदोलन, और भारत छोड़ो आंदोलन में योगदान दिया। वे संयुक्त प्रांत के पहले
मुख्यमंत्री (1946-1954) और
भारत के केंद्रीय गृह मंत्री (1955-1961) बने।
जमींदारी उन्मूलन, राज्य पुनर्गठन, और हिंदी को राजभाषा बनाने में उनकी भूमिका
उल्लेखनीय है। 1957 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित
किया गया। उनका निधन 7 मार्च 1961 को हुआ। उनकी विरासत आज भी उत्तराखंड और भारत में जीवित है।
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