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हेमवती नंदन बहुगुणा |
जीवन और प्रारंभिक पृष्ठभूमि
- जन्म और परिवार: हेमवती नंदन बहुगुणा
का जन्म 25 अप्रैल 1919 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के बूढ़ानी गांव में हुआ था। उनके
पिता डी.एन. बहुगुणा एक ब्राह्मण परिवार से थे और माता का नाम श्रीमती लक्ष्मी
देवी था। बहुगुणा का जन्म ऐसे समय हुआ जब भारत में स्वतंत्रता संग्राम जोर पकड़
रहा था, और इसने उनके जीवन पर गहरा प्रभाव
डाला।
- शिक्षा: बहुगुणा ने अपनी प्रारंभिक
शिक्षा पौड़ी गढ़वाल में प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से
बीए और एमए की डिग्री हासिल की। उनकी शिक्षा ने उन्हें सामाजिक और राजनीतिक
मुद्दों को समझने की गहरी समझ दी, और वे
छात्र जीवन से ही राष्ट्रीय आंदोलनों में सक्रिय हो गए।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
- छात्र जीवन में सक्रियता: बहुगुणा ने
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। वे 1930
के दशक में गांधीजी के नेतृत्व में चल रहे
आंदोलनों से प्रभावित थे। 1939 में
उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया, जिसके लिए उन्हें गिरफ्तार किया गया और जेल में डाल दिया गया।
- स्वतंत्रता सेनानी के रूप में: बहुगुणा ने संयुक्त प्रांत (आधुनिक उत्तर प्रदेश) में स्वतंत्रता संग्राम को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी गिरफ्तारी और जेल यात्राएं उनके समर्पण और साहस का प्रतीक थीं। वे गांधीवादी सिद्धांतों से प्रभावित थे और अहिंसा, स्वदेशी, और सामाजिक समानता में विश्वास रखते थे।
राजनीतिक जीवन
- प्रारंभिक राजनीति: स्वतंत्रता के
बाद बहुगुणा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सक्रिय हो गए। 1952 में वे पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए
चुने गए और जल्द ही अपनी नेतृत्व क्षमता के कारण कांग्रेस पार्टी में एक
महत्वपूर्ण नेता बन गए।
- उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री (1973-1975):
- बहुगुणा नवंबर 1973 से नवंबर 1975 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उनके कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण
कार्य हुए:
- कृषि
और ग्रामीण विकास: उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास पर जोर
दिया, जिसमें सड़कें, सिंचाई, और
बिजली आपूर्ति शामिल थी। उनके प्रयासों से उत्तर प्रदेश के किसानों को लाभ हुआ।
- शिक्षा
और स्वास्थ्य: बहुगुणा ने शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार पर ध्यान दिया।
ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों और स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना उनके कार्यकाल की
एक बड़ी उपलब्धि थी।
- हालांकि, 1975 में आपातकाल के दौरान कांग्रेस पार्टी के साथ उनके मतभेद हो गए,
और उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
- केंद्रीय मंत्री के रूप में:
- पेट्रोलियम और रसायन मंत्री (1971-1973):
बहुगुणा ने इस पद पर रहते हुए भारत में
पेट्रोलियम उद्योग को मजबूत करने में योगदान दिया।
- कृषि मंत्री (1977-1979): जनता पार्टी की सरकार में वे केंद्रीय कृषि
मंत्री बने। इस दौरान उन्होंने भारत की हरित क्रांति को आगे बढ़ाने में मदद की और
किसानों के लिए कई योजनाएं शुरू कीं।
- वित्त मंत्री (1979): उन्होंने कुछ समय के लिए वित्त मंत्री के रूप में
भी कार्य किया, जहां उन्होंने आर्थिक नीतियों को
लागू करने में अपनी विशेषज्ञता दिखाई।
- कांग्रेस से अलगाव और वापसी: 1977
में आपातकाल के बाद बहुगुणा ने कांग्रेस छोड़ दी
और जनता पार्टी में शामिल हो गए। बाद में उन्होंने अपनी पार्टी "कांग्रेस फॉर
डेमोक्रेसी" (सीएफडी) बनाई, जो बाद
में जनता पार्टी में विलय हो गई। 1980 में वे
फिर से कांग्रेस में लौट आए और अपने अंतिम दिनों तक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे।
उत्तराखंड के लिए योगदान
- उत्तराखंड आंदोलन को समर्थन: बहुगुणा
उत्तराखंड के लोगों की समस्याओं से अच्छी तरह वाकिफ थे। उन्होंने उत्तराखंड को अलग
राज्य बनाने के आंदोलन का समर्थन किया, हालांकि
उनके जीवनकाल में यह संभव नहीं हो सका। उनकी मृत्यु के बाद 2000 में उत्तराखंड राज्य बना।
- हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल
विश्वविद्यालय: उनकी स्मृति में श्रीनगर (गढ़वाल) में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल
विश्वविद्यालय की स्थापना की गई, जो आज
उत्तराखंड के प्रमुख शैक्षिक संस्थानों में से एक है।
व्यक्तिगत जीवन और मूल्य
- परिवार: बहुगुणा की पत्नी का नाम
कमला देवी था। उनके तीन बच्चे थे, जिनमें
से उनके बेटे विजय बहुगुणा और बेटी रीता बहुगुणा जोशी भी राजनीति में सक्रिय रहे।
विजय बहुगुणा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री (2012-2014) रहे, और रीता बहुगुणा जोशी उत्तर प्रदेश
सरकार में मंत्री रहीं।
- सादगी और नेतृत्व: बहुगुणा एक सादा
जीवन जीने वाले नेता थे। वे अपनी वाक्पटुता और जनता से सीधे संवाद के लिए जाने
जाते थे। उनकी नेतृत्व शैली में सामाजिक समानता और ग्रामीण विकास पर विशेष जोर था।
निधन
- हेमवती नंदन बहुगुणा का निधन 17
मार्च 1989 को अमेरिका के क्लीवलैंड में एक हृदय ऑपरेशन के दौरान हुआ। उनकी
मृत्यु की खबर से उत्तराखंड और भारत में शोक की लहर दौड़ गई। उनकी अंतिम यात्रा
में हजारों लोग शामिल हुए, और
उन्हें इलाहाबाद में गंगा नदी के किनारे अंतिम संस्कार किया गया।
सांस्कृतिक प्रभाव और विरासत
- राजनीतिक योगदान: बहुगुणा को उत्तर
प्रदेश और भारत की राजनीति में एक दूरदर्शी नेता के रूप में याद किया जाता है।
उनकी नीतियों ने ग्रामीण विकास और कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव लाए।
- उत्तराखंड की पहचान: बहुगुणा
उत्तराखंड के उन नेताओं में से एक थे, जिन्होंने
राष्ट्रीय मंच पर पहाड़ी क्षेत्रों की समस्याओं को जोरदार तरीके से उठाया। उनकी
मृत्यु के बाद उत्तराखंड आंदोलन को और बल मिला।
- शैक्षिक योगदान: हेमवती नंदन बहुगुणा
गढ़वाल विश्वविद्यालय उनकी शैक्षिक दृष्टि का प्रतीक है। यह विश्वविद्यालय आज भी
उत्तराखंड में उच्च शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।
- लोकप्रियता: बहुगुणा को "एचएन
बहुगुणा" या "गढ़वाल के शेर" के नाम से भी जाना जाता था। उनकी
वाक्पटुता और जनता से जुड़ाव ने उन्हें एक लोकप्रिय नेता बनाया।
चुनौतियां और आलोचनाएं
- राजनीतिक अस्थिरता: 1970 के दशक में कांग्रेस और जनता पार्टी के बीच उनके बार-बार बदलते गठजोड़ों की कुछ लोगों ने आलोचना की। कुछ आलोचकों ने इसे अवसरवादिता करार दिया, लेकिन उनके समर्थकों का मानना था कि यह उनकी रणनीतिक सोच का हिस्सा था।
- स्वास्थ्य समस्याएं: बहुगुणा को अपने
अंतिम वर्षों में हृदय संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा, जिसके कारण उनकी मृत्यु हुई। उनके स्वास्थ्य ने उनके राजनीतिक कार्यों
को प्रभावित किया।
हेमवती नंदन बहुगुणा (1919-1989)
भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता
थे। 25 अप्रैल 1919 को पौड़ी गढ़वाल के बूढ़ानी गांव में जन्मे बहुगुणा ने स्वतंत्रता
संग्राम में सक्रिय भाग लिया और 1939 में
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल गए। वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री (1973-1975),
केंद्रीय पेट्रोलियम, कृषि, और वित्त मंत्री रहे। बहुगुणा ने
उत्तराखंड आंदोलन का समर्थन किया और ग्रामीण विकास पर जोर दिया। उनकी स्मृति में
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। उनका निधन 17 मार्च 1989 को अमेरिका में हृदय ऑपरेशन के दौरान हुआ। उनकी विरासत आज भी
उत्तराखंड और भारत में प्रेरणा का स्रोत है।
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